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श्रुतज्ञानावरणीय कर्म
शब्द को सुनकर जो अर्थ का ज्ञान होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं अथवा मन की सहायता से शास्त्रों को पढ़ने और सुनने से जो बोध होता है, उसे श्रुतज्ञान कहते हैं।५१ ऐसी श्रुतज्ञान रूप आत्मशक्ति को जो कर्मशक्ति आच्छादित कर देती है, उसे श्रुतज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं। जब श्रुतज्ञानावरणीय कर्म अति प्रगाढ़ होता है, तब आत्मा को न अक्षर ज्ञान होता है और न लिपिज्ञान होता है।
___ मतिज्ञान व श्रुतज्ञान की उत्पत्ति में यद्यपि पाँच इन्द्रियों और मन की सहायता अपेक्षित है,५२ तथापि दोनों में अंतर है। किसी भी विषय का श्रुतज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले उसका मतिज्ञान होना आवश्यक है। श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है।५३ मतिज्ञान मूक है, उसमें शब्दोल्लेख नहीं होता। श्रुतज्ञान में शब्दोल्लेख होता है। मतिज्ञान विद्यमान वस्तु में प्रवृत्त होता है, जबकि श्रुतज्ञान अतीत, अनागत और वर्तमान इन त्रैकालिक विषयों में प्रवृत्त होता है। श्रुतज्ञानावरणीय कर्म का उदय हो तो भविष्यकाल का चिंतन करने वाली दीर्घ-दृष्टि प्राप्त नहीं होती, न उपदेश को समझने देती और न शास्त्र को पढ़ने देती।
___ तीन वर्ष की छोटी उम्र में वज्रस्वामी ने साध्वी जी के श्रीमुख से सुनते-सुनते ग्यारह अंग शास्त्र कण्ठस्थ कर लिये थे। यह है श्रुतज्ञानावरणीय कर्म का अद्भूत क्षयोपशम। श्रुतज्ञानावरणीय कर्मबंध के कारण और निवारण - श्रुतज्ञानियों की निंदा करने से और उनके साथ अभद्र व्यवहार करने से यह कर्म बंधता है। ज्ञान के उपकरण पेन, पुस्तक, धर्मग्रंथ, अखबार आदि फाडने से, पटकने से, क्रोध या लोभवश जलाने से भी इस कर्म का बंध होता है।
प्रतिदिन नया ज्ञान अर्जित करने का पुरुषार्थ न करने से अध्ययन-अध्यापन में विक्षेप डालने से, कण्ठस्थ ज्ञान का पुनरावर्तन न करने से, श्रुतज्ञान देने की शक्ति होते हुए भी प्रमादवश दूसरों को न पढ़ाने से, ज्ञान का अशुद्ध उच्चारण करने से और पढ़ने के लिए दूसरों को प्रेरित या प्रोत्साहित न करने से श्रुतज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है।
पूर्वजन्म में बाँधे हुए श्रुतज्ञानावरणीय कर्म इस जन्म में कैसे क्षय हो सकते हैं, यह भी जानना आवश्यक है। १) 'मैनें श्रुतज्ञानावरणीय कर्म बाँधा हुआ है इसलिए मुझे इसका क्षय करना है।' ऐसा संकल्प प्रतिदिन करना चाहिए। संकल्प के माध्यम से सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। २) श्रुत को विनय और बहुमान से पढ़ना चाहिए। प्रतिदिन पढ़ने पर याद न हो तो भी निराश हुए बिना सतत पढ़ने पर याद न हो तो भी निराश हुए बिना सतत पढ़ना चाहिए।