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में जो कुछ भी लिखा होगा, वही होगा; इसको लेकर अपने पुरुषार्थ को, अपने कर्तव्य को तिलांजलि देकर हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाना उचित नहीं। यह नियतिवाद की ओर में स्वपुरुषार्थ हीनता को आश्रय देना है, तथा अपने आलस्य एवं अकार्मण्यता का पोषण करना है।६२
गोशालक का नियतिवाद एकांत है, वह अकारणवाद तथा अकार्मण्यता का आश्रय लेने तथा उत्थान, कर्म, बल, वीर्य एवं पुरुषार्थ को ठुकराकर एकांत रूप से नियति के अधीन होने की प्रेरणा देता है। अगर सम्यक् नियतिवाद का आश्रय लिया जाये तो वहाँ कभी ऐसा विचार नहीं होता कि सब कुछ नियत है, फिर मुझे पुरुषार्थ करने की क्या आवश्यकता है? परोक्षज्ञानी को यह नहीं ज्ञात होता कि क्या नियत है? क्या भवितव्य है? और क्या होनेवाला है? अत: उसे मोक्षमार्ग में सम्यक् पुरुषार्थ करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। ___ अनंतकाल तक का क्रमबद्ध पर्याय परिवर्तन होना नियत है, इस प्रकार का नियतिवाद आध्यात्मिक जगत् में माना गया है, ऐसा माने बिना सर्वज्ञ केवली भगवान अपने ज्ञान में तीनों काल, तीनों लोक के घटनाक्रम को युगपत् कैसे जान पाएँगे? यही कारण है कि भगवान महावीर के केवलज्ञान होने के पश्चात् भी इसी नियतिवाद को कालादि का सहकारी कारण मानकर सम्यक् पुरुषार्थ करते रहे। कर्मवाद मीमांसा
___ कर्मवाद का मन्तव्य यह है कि जगत् में जो भी घटना होती है, जो कुछ कार्य, व्यवहार या आचरण होता है अथवा जीवों का जहाँ भी जिस गति, योनि या लोक में जन्म होता है, तथा उसे शरीर से संबंधित जो भी अच्छी बुरी, अनुकूल-प्रतिकूल, सामग्री मिलती है, अथवा जीवों को जो भी सुख-दुःख, हानि-लाभ, इष्ट-अनिष्ट, हित-अहित, संघर्ष-मेल आदि का वेदन होता है उसके पीछे कर्म ही एकमात्र कारण है। उसमें काल या स्वभाव का कुछ भी नहीं चलता। चाहे कितना पुरुषार्थ किया जाए पूर्वकृत कर्म शुभ नहीं है तो जीवों को उसका अनुकूल फल नहीं मिलता। जिस समय किसी वस्तु के मिलने का अवसर आता है, उसके लिए पुरा उद्यम भी किया जाता है, परंतु अशुभ कर्मोदयवशात् ऐन वक्त पर मनुष्य मरण शरण हो जाता है अथवा किसी वस्तु की उपलब्धि में अंतराय आ जाती है, मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, वह विपरीत मार्ग पर चलकर उस उपलब्धि के अवसर को खो बैठता है, यह सब पूर्वकृत कर्मों के फल का ही खेल है।
. दशरथपुत्र युगपुरुष रामचंद्र जी को प्रात:काल राजगादी मिलने वाली थी। अयोध्या में सर्वत्र खुशियाँ छा रही थी। वशिष्टऋषि ने श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रात: काल मुहूर्त