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१२०. अखंड-ज्योति, जुलाई १९७४ में प्रकाशित (लेख) पृ. ११,१२ १२१. जैन दर्शन में आत्म विचार, (डॉ. लालचंद जैन) पृ. २२२ १२२. कल्याण (मासिक पत्र) का पुनर्जन्म विशेषांक १२३. अखंड-ज्योति, जुलाई १९७४ में प्रकाशित (लेख) से सारसंक्षेप, पृ. १२ । १२४. अखंड-ज्योति, मार्च १९७२ में प्रकाशित (लेख) से सारसंक्षेप, पृ. ५२-५३ १२५. अखंड-ज्योति, फरवरी १९७९ में प्रकाशित (लेख) से सारसंक्षेप, पृ. ३५-३६ १२६. अखंड-ज्योति, नवंबर १९७६ में प्रकाशित (लेख) से सारसंक्षेप, पृ. ३९ १२७. अखंड-ज्योति, जुलाई १९७७ में प्रकाशित (लेख) से सारसंक्षेप, पृ. २७ १२८. संलेखना व्रत के ५ अतिचारों से तुलना करें जीवित मरणाशंसा सुखानुबंध मित्रानुराग
निदान कणानि। तत्त्वार्थ सूत्र, अ. - ७ सूत्र नं. ३२ १२९. राजप्रश्नीय सूत्र, (संपा. मधुकर मुनि) में सूर्याभदेव का प्रकरण, पृ. १० १३०. उपासकदशांगसूत्र में (चुलनी पिता व कामदेव श्रावक की देव द्वारा परीक्षा),
(युवाचार्य मधुकरमुनि) पृ. ८५.१०६ १३१. अंतकृतदशांगसूत्र का द्वारिकादहन प्रकरण (युवाचार्य मधुकरमुनि) पृ. ९५ १३२. अखंड-ज्योति, जुलाई १९७९ में प्रकाशित (लेख) से सारसंक्षेप, पृ. ६ १३३. अखंड-ज्योति, नवंबर १९७६ में प्रकाशित (लेख) से सारसंक्षेप, पृ. ५८ १३४. कर्मजं लोकवैचित्र्यम्। अभिधर्मकोष, ४/१ १३५. ब्रह्मसूत्र (शांकरभाष्य), २/१/१४ १३६. एगे आया। ठाणांगसूत्र , १/१ (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनिजी) १३७. गतियों की विभिन्नता भी कर्मजन्य है। जंणरय तिरिक्ख मणुस्स देवाणं णिवत्तयं
कम्मं त गदिणाम। धवला, १३/५/५ आचार्य वीरसेन १३८. कर्मग्रंथ विवेचन, युवाचार्य मरूधर केसरी श्री मिश्रीलाल, भाग- ३ १३९. मणसा वाया काएण वा वि जुतस्स विरिय परिणामो जिहप्पणी जोगो ....
पंचसंग्रह - ८८ १४०. कर्मग्रंथ, भाग- ३ (संपा. मरुधर केशरी श्री मिश्रीमलजी म. सा.) पृ. ५ १४१. गई इंदिएसु काये ..... सण्णि आहार। गा. १४१ (नेमिचंद्रचार्य) गोम्मटसार
जीवकांड १४२. जैनदृष्टि से कर्म , पृ. २४ १४३. न्यायदर्शन सूत्र, ३/२ १४४. कर्मग्रंथ, भाग - ३ (संपा. मरुधर केशरी मिश्रीमलजी म.सा.) १४५. आत्म प्रवृत्ते मैथुन सम्मोहत्यादो वेदः । धवला, १/१/१/४ १४६. कषायात्मान् हिनस्तिती ..... कषाय: । राजवार्तिक, ६/७ (भट्टाकलंक देव) १४७. ज्ञायते परिच्छधते वस्त्व तेनास्मादस्मिन्वेति वा ज्ञानम्। अनुयोगद्वार टीका १४८. संज्ञिनः समनस्काः , (उमास्वाति) तत्त्वार्थसूत्र, अ. २/२५