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जनता के समक्ष कर्मवाद का आविर्भाव ही नहीं, प्रचार प्रसार भी हुआ।२९ यह हुआ प्रागैतिहासिक काल में कर्मवाद का सर्वप्रथम आविर्भाव का कारण। कल्पसूत्र३° और जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति३१ में भी यह कहा गया है। तीर्थंकरों द्वारा अपने युग में कर्मवाद का आविर्भाव ___ इस अवसर्पिणीकाल के कालक्रम में चौबीस तीर्थंकर होते हैं, हो चुके हैं।३२ एक तीर्थंकर के पश्चात दूसरे तीर्थंकर होने में सैकडों हजारों लाखों वर्षों का अन्तराल हो जाता है।३३ इसी अवसर्पिणी युग के भगवान ऋषभदेव के सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाने के बाद आगे के द्वितीय तीर्थंकर के आने तक में लाखों वर्षों का समय हो गया। वंदनीय साधुजनों३४ में भी यही कहा है। इतना लंबा व्यवधान जनता की तत्त्वज्ञान की स्मृति, धारणा या परंपरा को धूमिल कर देता है। जनता अपने समय के तीर्थंकर के द्वारा आविर्भूत कर्मवाद से सैद्धांतिक तत्त्वों एवं तथ्यों को धीरे-धीरे विस्मृत हो जाती है। इसलिए युग-युग में एक तीर्थंकर के मुक्त हो जाने के बाद दूसरा तीर्थंकर आता है, और जनता में सुषुप्त विस्मृत एवं धूमिल पडे हुए सिद्धांतों को जागृत एवं आविष्कृत करते हैं, स्मरण कराते हैं और उस पर पडी हुई विस्मृति की धूल की परत को हटाते हैं। . इस प्रकार हर महायुग में नये आनेवाले तीर्थंकर अपने युग की परिस्थिति और आवश्यकता को देखकर कर्मवाद का आविर्भाव और आविष्कार करते हैं। इसकी झाँकियाँ जैनागम में तथा जैनाचार्यों एवं मनीषी, मुनियों द्वारा लिखित ग्रंथों में मिलती है। भगवान महावीर द्वारा कर्मवाद का आविर्भाव
भगवान महावीर के जीवन का लेखा जोखा सूत्रकृतांग, ३५ कल्पसूत्र३६ और आचारांग सूत्र३७ आदि अनेक शास्त्रों में विशद रूप से वर्णन अंकित है।
भगवान महावीर ने संयम अंगीकार करके साडेबारह वर्ष तक तपश्चर्या तथा मौन साधना की। तप साधना के पश्चात् जब उन्होंने मौन खोला तब जनता के सामने प्रथम उपदेश दिया 'कि 'मा हणो-माह णो' याने कि कोई भी जीवों को मत मारो। जीव हिंसा से कर्म बंध होता है इस प्रकार जनता को कर्मवाद का जीता जागता रहस्य समझाया। जो लोग कर्मवाद के सिद्धांत को विस्मृत हो गये थे उन्हें भी कर्म और कर्मफल के रहस्य का साक्षात्कार हो
गया।३०
गणधरों की कर्मवाद संबंधी शंकाओं का समाधान
भगवान महावीर के तीर्थंकर बनने के पश्चात् जो ग्यारह धुरंधर विद्वान पंडित उनके संपर्क में आये वे वेदपाठी ब्राह्मण थे। उन पंडितों के मन में आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग-नरक