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सांख्य दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म
सांख्यदर्शन का भी यह मत है कि पुरुष (आत्मा) अपने शुभाशुभ कर्मों के फलस्वरूप नाना योनियों में परिभ्रमण करता है। सांख्यदर्शन की मान्यता है कि यद्यपि शुभाशुभ कर्म स्थूल शरीर के द्वारा किये जाते हैं, किन्तु वह (स्थूल शरीर) कर्मों के संस्कारों का अधि नहीं है उनका अधिष्ठाता है स्थूल शरीर से भिन्न सूक्ष्म शरीर । सूक्ष्म शरीर का निर्माण पांच ज्ञानेन्द्रिय, पांच तन्मात्राओं, महतत्त्व (बुद्धि) और अहंकार से होता है । मृत्यु होने पर स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है, सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है। प्रत्येक संसारी आत्मा (पुरुष) के साथ यह सूक्ष्म शरीर रहता है, इसे आत्मा का लिंग भी कहते हैं । यही पुनर्जन्म का आधार है । ९६
इस प्रकार सांख्य दर्शन में भी पुनर्जन्म एवं पूर्वजन्म का अस्तित्व सिद्ध होता है। सांख्यकारिका में इस बात का उल्लेख हैं । ९७
मीमांसा दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म
मीमांसादर्शन आत्मा को नित्य मानता है, इसलिए पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को मानता है। मीमांसादर्शन में चार प्रकार के वेद प्रतिपाद्य कर्म बताये गये हैं। काम्य कर्म, निषिद्ध. कर्म, नित्य कर्म और नैमित्तिक कर्म । ९८ तंत्र वार्तिक १९ और ब्रह्मसूत्रशांकर भाष्य १०० में भी यही बात बताई गई है।
योगदर्शन में कर्म और पुनर्जन्म
योगदर्शन व्यासभाष्य में पुनर्जन्म की सिद्धि करते हुए कहा गया है कि पूर्वजन्म के कर्मरूप संस्कारों का मानना आवश्यक । इससे पूर्वजन्म का अस्तित्व सिद्ध होता है । १०१
पातंजल योगदर्शन में कहा गया है, जीव जो कुछ प्रवृत्ति करता है। उसके संस्कार चित्त पर पड़ते हैं। इन संस्कारों को कर्म संस्कार या कर्माशय या केवल कर्म कहा जाता है। संस्कारों में संयम (धारणा, ध्यान और समाधि) करने से पूर्वजन्म का ज्ञान होता है। ऐसे पूर्वजन्म सिद्ध होने से पुनर्जन्म तो स्वतः सिद्ध हो जाता है। योगदर्शन का अभिमत है कि जो कर्म अदृष्टजन्य वेदनीय होते हैं, वे अपनाफल इस जन्म में नहीं देते, उनका फल आगामी जन्म में मिलता । नारक और देव के कर्म अदृष्टजन्य वेदनीय होते हैं। इस पर से भी पुनर्जन्म फलित होता है । १०२ योगदर्शन व्यासभाष्य में इसी बात का उल्लेख है । १०३ महाभारत में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म
महाभारत में बताया गया है कि 'किसी भी आत्मा द्वारा किया हुआ पूर्वकृत कर्म निष्फल नहीं जाता, न ही वह उसी जन्म में समाप्त हो जाता है, किन्तु जिस प्रकार हजारों गायों में से बछडा अपनी माँ को जान लेता है, उसके पास पहुँच जाता है, उसी प्रकार पूर्वकृत