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दूसरा अधिकार।
[२५ पथिक लोगोंको इच्छानुसार फल, फूल देनेवाली वृक्षोंकी पंक्तियां सब मार्गों में शोभायमान हो रहीं थीं ॥५॥ उस देशमें सुकालके मेघोंसे सींची हुई किसानोंकी खेती सब तरहकी प्रशंसनीय संपत्तिसे फली फूली हुई दिखाई देती थी॥६॥ उस देशमें एक पुष्पपुर नामका नगर था जोकि बहुत ऊंचे कोटसे घिरा हुआ था तथा अपने बाग बगीचोंकी शोभासे वह नंदनवनको भी जीतता था ॥ ७॥ वहांके देवमंदिर (जिनालय) और ऊंचे ऊंचे राजभवन पूर्णचंद्रमाकी किरणोंके समान सफेद थे और वे अपनी शोभासे मानों हँस रहे ही हों ऐसे जान पड़ते थे ॥ ८॥ वहांके निवासी लोग सब जैनधर्ममें तत्पर थे, धर्म, अर्थ, काम, तीनों पुरुषार्थीको सिद्ध करनेवाले थे, मनोहर थे, दानी थे और बड़े यशस्वी थे ॥९॥ वहांकी स्त्रियां शीलवती, पुत्रवती, सुंदर, मुख देनेवाली, चतुर, सौभाग्यवती और उत्तम थीं तथा इसलिये वे कल्पलताओंके समान सुशोभित होती थीं ॥१०॥ उस नगरमें दूसरे चंद्रमाके पथिकमानववृन्दानां मनोवांच्छितदायिकाः ॥५॥ यत्र फलवती जाता कार्युकानां कृषिः सदा । समस्तशस्तसंपत्या सुकालमेघसंचिताः ॥६॥ तत्र पुष्पपुरं भाति तुंगप्राकारसंवृतम् । तद्वाटी पुष्पवारेण जयति नंदनं वनम् ॥७॥ देवसद्मानि यत्रत्यास्तुंगप्रासादपंक्तयः। खशोभया हसंतीव पूर्णचंद्राशुपांडुराः ॥ ८॥ तत्रत्या हि जनताऽभूजिनधर्मपरायणा । त्रिवर्गसाधिका कम्रा सत्यागा सुयशोधरा ॥९॥ रानंते यत्र कामिन्यः सशीलाः सफला वराः । सरसाः कल्पबल्यो वा सकांताः कामदाः पराः ॥१०॥ तत्राऽभूत् महीचंद्रो भूपश्चंद्र इवापरः । जनपार्थिवसंदोहैः