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गौतमचरित्र। करता है ? अर्थात् वह सभी बुरे काम कर डालता है। ॥२१९-२२०॥ उन स्त्रियोंके सैकड़ों उपद्रव करनेपर भी वे मुनिराज चलायमान नहीं हुए । क्या प्रलय कालकी वायुसे महान् मेरु पर्वत भी कभी चलायमान होता है ? ॥ २२१ ॥ तदनन्तर वे तीनों ही स्त्रियां विरह रूपी वह्निसे संतप्त होकर अनेक प्रकारके कटाक्ष करती हुई उन मुनिराजके सामने नंगी होकर नाचने लगीं ॥ २२२ ॥ और भोग क्रीडाकी इच्छासे ही राज्यको छोड़कर इच्छानुसार भ्रमण करनेवाली वे स्त्रियां उन मुनिराजसे कहने लगीं ॥२२३॥ कि जो इस लोकमें इच्छानुसार घूमते फिरते हैं उनको परलोकमें भी कोई बंधन नहीं होता । इस लोकमें भोग करनेसे भोगोंकी प्राप्ति होती है और नंगे रहनेसे नंगापन ही मिलता है ॥ २२४ ॥ इसलिये हे मुनिराज! प्रसन्न हो और हमारी इच्छाओंको पूर्ण करो । क्योंकि यह भोगोंकी संपदा चक्रवर्ती, देवेन्द्र और नागेन्दोंसे भी नहीं छूटी है ॥२२॥ संसारमें आनेका फल तृतीयया मुनींद्रोऽपि धूम्रव्याकुरितः कृतः । मदनपीडितः को ना कृत्यं किं किं करोति हि ॥२२०॥ न चचाल मुनिः किंचित्तत्कतोपद्रवैः शतैः। प्रलयकालवातेन किं वा स्वर्णाचलो महान् ॥२२१॥ नग्नीभूत्वा तदा सर्वास्ता ननृतुमुनेः पुरः । विरहवह्निसंतप्ताः कटाक्षक्षेपतत्पराः ॥२२२॥ राज्यस्थानं परित्यज्य भोगक्रीडनवांच्छया । स्वैरिताः भ्रमणे रक्तास्ताः प्रोचुरिति तं प्रति ॥ २२३ ॥ भ्रमंति स्वेच्छया येऽत्राऽमुत्र तेषां न बंधनम् । भोगेन लभते भोग्यं नग्नत्वे नम्रता भवेत् ॥ २२४ ॥ प्रसन्नीभूय योगींद्र ! देहि नो वांच्छित