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गौतमचरित्र ।
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थीं । मुनियोंको घोर उपसर्ग करनेके पापसे वे सदा दुःखी रहती थीं ।। २८३ ।। उनकी देह सूखी हुई थी, आखें पीलीं थीं, तालु ओठ जीभ सब नीली थीं, नाक टेड़ी थी, पेट बहुत बड़ा था, दांत दूर दूर थे, पैर मोटे थे, शरीर भी मोटा था, - स्तन विषम थे, हाथ छोटे थे, ओठ लंबे थे, बाल हल्दीके समान पीले थे, आवाज कौए के समान थी, प्रेम उनमें था ही नहीं, उनकी भोंहे मिली हुई थीं, वे सदा झूठ बोला करती थीं, बहुत ही क्रोध करती थीं, अनेक दोषोंसे अंधी (विचार - हीन) हो रही थीं, अनेक रोगोंसे पीडित थीं, उनके नगरमें जाते ही समस्त नगरमें दुर्गंध फैल जाती थी सो ठीक ही हैपापकर्मके उदयसे इस संसार में क्या क्या नहीं होता है । वे तीनों हो उच्छिष्ट भोजनोंसे अपना पेट भरती थीं, चिथडोंसे शरीर ढकती थीं, और दुःखदारिद्रसे सदा पीडित रहती थीं ॥ २८४ - २८८ ।। वे तीनों ही बदसूरत कन्याएं अनुक्रमसे बढ़कर तरुण हुई और उन्हीं दिनों उनके पूर्व पापकर्मके पूरिताः ॥ २८३ ॥ शुष्कदेहाश्र पिंगाक्ष्या नीलतालौष्टजिह्नकाः । वक्रनासो महाउंदा विरलदशनास्तथा ॥ २८४ ॥ स्थूलपादाश्च दीर्घाग्यो विषमस्तनधारिकाः । ह्रस्वहस्ताश्च लंबोष्ट्यो हरिद्राभतनूरुहाः ॥ २८५॥ काकरवा गतस्नेहाः संरूढाः संहति श्रुवः । सत्य - हीना महातीव्रा दोषांधा रोगपीडिताः ॥ २८६ ॥ तासां चरणसंचारे नगरमुद्वसं भवेत् । यन्न पापोदयेऽश्रेयो जायते भुवि तच किम् ॥२८७॥ उच्छिष्टभक्तवृंदेन जठरं पूरयंति ताः । खंडवस्त्र पिधानांग्यो -दुःखदारिद्रपीडिताः ॥ २८८ ॥ अनुक्रमेण तारुण्यं संप्राप्तास्ताः प्रकु