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गौतमचरित्र। हुआ वस्त्र उस प्रतिमाको ढक लेता है उसीप्रकार जो ज्ञानको ढक ले उसे ज्ञानावरण कर्म कहते हैं। उसके पांच भेद हैं। मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण-मनःपर्यय ज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण ॥४७॥ जिसप्रकार दरवाजे पर रहनेवाला द्वारपाल राजाके दर्शन नहीं होने देता उसी प्रकार आत्माके दर्शन गुणको रोकनेवाले (ढकनेवाले) कर्मको दर्शनावरण करते हैं। वह नौ प्रकारका है । चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि ॥४८॥ जिसप्रकार शहत लपेटी तलवारकी धार चाटनेसे सुख दुःख दोनों होते हैं उसीप्रकार जो सुख दुख दोनोंका अनुभव करावे उसे वेदनीय कर्म कहते हैं । उसके दो भेद हैं-सातावेदनीय, असातावेदनीय ॥ ४९ ॥ जिसप्रकार यद्य वा धतूरा मनुष्यको मोहित कर देता है उसीप्रकार जो आत्माको मोहित कर देवे-स्वरूपको भुला देवे उसको मोहनीय कर्म कहते हैं। उसके अट्ठाईस भेद हैं । अनन्तानुबन्धी, क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रयाख्यानावरण, क्रोध, मान, माया, लोभ, संज्वलन, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, यत् । नवविध नृपद्वारे द्वाःस्थितो नृपदर्शनम् ॥४८॥ वेदयति सुख दुःख वेदनीयं मतं च तत् । मधुलिप्तासितुल्यं हि द्विविधं श्रीनिनागमे ॥ ४९ ॥ आत्मानं मोहयत्येव मोहनीयं प्रकीर्तितम् । अष्टा