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गौतमचरित्र। भोगभूमिमें उत्पन्न हुए स्त्री पुरुषोंके शरीरका रंग पहले कालमें उदय होते हुए सूर्यके समान, दूसरे कालमें पूर्ण चन्द्रमाकी प्रभाके समान और तीसरे कालमें नीलवर्णका होता है ॥ ९२ ॥ वहांके स्त्री पुरुष पहले कालमें चौथे दिन वेरके समान भोजन लेते हैं, दूसरे कालमें तीसरे दिन बहेड़ेके समान और तीसरे कालमें दूसरे दिन आंबलेके समान भोजन लेते हैं ॥९३॥तीनों कालोंमें बस्त्रांग, दीपांग, गृहांग, ज्योतिरंग, मालांग, भूषणांग, भोजनांग, भाजनांग, वाद्यांग और मद्यांग जातिके कल्पष्टक्ष सदा सुशोभित रहते हैं ॥९४॥ तीनों कालोंके स्त्री पुरुष, स्त्री पुरुषोंके सुलक्षणोंसे सुशोभित रहते हैं और क्रीडा किया करते हैं तथा वे कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न हुए आहारसे सदा तृप्त रहते हैं । वहांके तिर्यंच भी ऐसे ही होते हैं और सब अनेक कलाओंसे सुशोभित होते हैं ॥९॥ जो मनुष्य तीनों प्रकारके उत्तम पात्रोंको मुख देनेवाला शुभ दान देते हैं वे भोगभूमिमें उत्पन्न होकर इन्द्रके समान सुख भोगते हैं ॥९६॥ जिसप्रकार किसी अच्छे क्षेत्रमें बोया हुआ मानवाः । षट्चतुर्दिसहस्राणि चापानि तुंगविग्रहाः ॥९१॥ उद्यद्भास्करवर्णाभाः पूर्णेदुसदृशप्रभाः । नीलवर्णाः क्रमात्तेषु त्रिषु योषिन्नरा मताः ॥१२॥ क्रमाद् वदरमात्रं च विभीतकाम्लिका समम् । स्त्रीनरा भोजनं कुर्युश्चतुस्त्रिद्विदिनैस्त्रिषु ॥९३॥ वस्त्रदीपगृहज्योतिर्माल्यभूपांगभोननैः । भाननतुर्यमद्यांगैः कल्पवृक्षैरभात्रिषु ॥९४॥ स्त्रीपुंसलक्षणैर्युक्ता रमंते त्रिषु ताः प्रजाः । तृप्ताः कल्पद्रुमाहारैस्तिर्यंचोऽपि कलान्विताः ॥९॥ मानुषस्त्रिविधे पात्रे दानं दत्त्वा शुभाकरम् ।