________________
१६०]
गौतमचरित्र। ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव, कापिष्ट, शुक्र, महाशुक्र, सतार, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत ये सोलह स्वर्ग हैं, इनके ऊपर नवग्रेवेयक हैं, फिर नौ अनुदिश हैं और उनके ऊपर विजय, वैजयंत, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पांच पंचोत्तर हैं । इन देवोंमें ऊपर ऊपरके देवोंमें आयु अधिक है, प्रभाव अधिक है, मुख अधिक है, शरीरकी कांति अधिक है, लेश्याओंकी विशुद्धि अधिक है, इन्द्रियोंका विषय अधिक है और अवधिज्ञानका विषय अधिक है ॥२१५-२१४ ॥ इसी प्रकार ऊपर ऊपरके देवोंमें गति, शरीरकी ऊँचाई, परिग्रह और अभिमान घटता गया है। ग्रैवेयकसे पहले पहले अर्थात् सोलह स्वर्गतकके देव कल्पवासी कहे जाते हैं और आगेके देव कल्पातीत माने जाते हैं ॥२१॥ इन वैमानिक देवोंके विमानोंकी संख्या चौरासी लाख सतानवे हजार तेईस है ॥ २१६ ॥ भवनवासी, व्यंतर ॥२१०॥ आद्य सौधर्म ऐशानः सनत्कुमारकः क्रमात् । माहेंद्रब्रह्मको चाऽपि ब्रह्मोत्तरश्च लांतवः ॥२११॥ कापिष्टशुक्रकौ चैव महाशुक्रसतारको । सहस्रारानतौ प्रोक्तौ सप्राणतारणाच्युताः ॥ २१२ ॥ नवग्रैवेयकाः प्रोक्ता नवानुदिशकास्तथा। विजयवैजयंतौ च जयंतोऽप्यपराजितः॥२१३॥ सर्वार्थसिद्धिकस्तेषु स्थितिप्रभावसौख्यतः । द्युतिलेश्यविशुद्धयक्षावधिविषयतोऽधिकाः ॥२१४॥ गतिगात्राभिमानेभ्यः परिग्रहेण हीनकाः । देवाः प्रोक्ताः निनैः कल्पाः पूर्व ग्रैवेयकात्तथा ॥२१५॥ चतुरशीतिलक्षास्तु विमानानि सुरालये । त्रिविंशत्यधिकाः सप्तसन्नवतिसहस्रकाः ॥ २१६ ॥ ज्योतिर्भावनभौमानां तेनोलेश्या