Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ पांचवां अधिकार। [२०३. वज्रके समान थे और आचार्योंके समुदायमें मुख्य थे। ऐसे वे श्रीभूषण मुनिराज सदा विजयशील हों॥ २६६ ॥ उनके पट्टपर मुनिराज धर्मचन्द्र विराजमान हुए। ये श्रीधर्मचन्द्र बलात्कार गणमें प्रधान थे, मूलसंघमें विराजमान थे और भारती गच्छके दैदीप्यमान सूर्य थे॥२६७॥ श्रीरघुनाथ नामके महाराजके राज्यशासनमें एक महाराष्ट्र नामका छोटा नगर है। उसमें एक श्रीऋषभदेवका जिनालय शोभायमान है, यह जिनालय बहुत ही शुभ है, बहुत ही सुख देनेवाला है, पूजा पाठ आदि महोत्सवोंसे सदा सुशोभित रहता है, अनेक प्रकारकी शोभाओंसे विभूषित है, सदा आनन्द बढ़ानेवाला है और धर्मात्मा मनुष्य व योगिराज सदा इसकी सेवा करते रहते हैं ॥२६८॥ उसी जिनालयमें बैठकर बिक्रम सम्वत् १७२६ की ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीयाके दिन शुक्रके शुभ स्थानमें रहते हुए अनेक आचार्योंके अधिपति श्रीधर्मचन्द्र मुनिराजने श्रीगौतमस्वामीकी भक्तिके वश होकर यह श्रीगौतमस्वामीका हरिः । सिद्धध्याननुतिप्रणामनिरतः क्रोधादिशैलाशनिः, श्रीमच्छूरिगंणाधिपो विजयतां श्रीभूषणाख्यो मुनिः ॥२६६॥ पट्टे तदीये मुनि धर्मचन्द्रोऽभूच्छीबलात्कारगणे प्रधानः, श्रीमूलसंघे प्रविराजमानः, श्रीभारतीगच्छसुदीप्तिभानुः ॥२६७ ॥ राजच्छ्री रघुनाथनाम नृपतौ ग्रामे महाराष्ट्रके, नाभेयस्य निकेतनं शुभतरं भाति प्रसौख्याकरम् । श्रीपूजादिमहोत्सवव्रनयुतं भूरिप्रशोभास्पदं, सद्धर्मान्विसयोगिमानुषगणैः सेव्यं प्रमोदाकरम् ॥२६८॥ तस्मिन् विक्रमपार्थिवाद्रसयुगाद्रींदुप्रमेवर्षके, ज्येष्ठे मासि सितद्वितीयदिवसे कांतेऽहि

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214