Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ पांचवां अधिकार। [१६५ विमान पहले स्वर्गमें छह लाख और दूसरेमें चार लाख हैं ॥२३५ ॥ पहले स्वर्गमें उत्पन्न हुई देवियां दक्षिण दिशामें आरण खर्गतक जाती हैं और ईशान स्वर्गमें उत्पन्न हुई देवियां उत्तर दिशाकीओर अच्युत स्वर्गतक जाती हैं ॥२३६॥ सौधर्म स्वर्गमें रहनेवाली देवियोंकी उत्कृष्ट आयु पांच पल्य है फिर बारहवें स्वर्गतक दो दो पल्य बढ़ती गई है अर्थात् दूसरे स्वर्गकी देवियोंकी उत्कृष्ट आयु सात पल्य, तीसरेमें नौ पल्य, चौथेमें ग्यारह पल्य, पांचवेंमें तेरह पल्य, छठेमें पन्द्रह पल्य, सातवेंमें सत्रह पल्य, आठवमें उनईस पल्य, नौवें में इकईस पल्य, दशमें तेईस पल्य, ग्यारहवेमें पच्चीस पल्य और बारहवें स्वर्गमें देवियोंकी आयु सत्ताईस पल्य है । इससे आगे सात सात पल्यकी बढ़ती गई है । अर्थात् तेरहवें स्वर्गमें चौतीस पल्य, चौदहवें स्वर्गमें इकतालीस पल्य, पंद्रहवें स्वर्गमें अडतालीस पल्य और सोलहवें स्वर्गमें देवियोंकी आयु पचपन पल्य है । सोलहवें स्वर्गसे आगे देवियां हैं ही नहीं ॥२३७२३८॥ इस संसारमें जो इन्द्र चक्रवर्ती आदिके सुख प्राप्त होते हैं वह सब पुण्यका फल समझना चाहिये और नरक विमानानि षट् चतुर्लक्षकानि च ॥२३५॥ दक्षिणाशारणांतेषु देव्यो यांत्यादिकल्पनाः । उत्तराशाच्युतांतेप्वैशानजाता निजास्पदम् । ॥२३६॥ सौधर्मे पंच पल्यानि सुरस्त्रीणां परा स्थितिः। ततो यथाक्रमं द्वे द्वे वर्द्धते द्वादशांतकम् ॥ २३७ ॥ आत्रयोदशमस्वर्गाहर्द्धते सप्त सप्त च । अच्युते पंचपंचाशत्परे न संति योषितः ॥२३८।। इंद्रचक्रयादिसत्सौख्यं यत्तत्पुण्यफलं मतम् । नारकतिर्यगादीनां

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214