Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 209
________________ २०० ] .... गौतमचरित्र। रानीके पर्यायमें उत्पन्न हुआ था, फिर नरकमें गया, वहांसे निकलकर विलाव हुआ, फिर शूकर हुआ, फिर कुत्ता हुआ, फिर मुर्गा हुआ और फिर शूद्रकी कन्यामें जन्म लिया। वहांसे व्रत पालन करनेके प्रभावसे ब्रह्म स्वर्गमें देव हुआ और फिर वहांसे चयकर ब्राह्मणका पुत्र गौतम हुआ तथा उसके पांचसौ शिष्य हुए। सो ठीक ही है-धर्मके प्रभावसे क्या क्या नहीं होता है अर्थात् सब कुछ होता है ॥ २६१ ॥ भगवान् महावीरस्वामीके समवसरणमें मानस्तंभको देखकर गौतम ब्राह्मणका सब अभिमान चूरचूर होगया, वहींपर भगवान महावीरस्वामीके समीप ही उन्होंने जिनदीक्षा धारण कर ली, समस्त परिग्रहोंका साग कर दिया और चारों ज्ञानोंको धारण कर वे श्री महावीरस्वामीके प्रसिद्ध और सर्वोत्तम गणधर हुए । तदनन्तर उन्होंने भव्यजीवोंको सुख देनेवाली और पापरूप संतापको नष्टकर देनेवाली धर्मष्टि की (धर्मोपदेश दिया) इसीलिये उन्हें सब इन्द्र नमस्कार करते हैं और सब राजा महाराजा नमस्कार करते हैं ऐसे भगवान् श्री गौतमलाभाय मम भवतु केवलम् । निःशेषकर्मणां हंत्री भूरिसुखप्रदायिका ॥२६०॥ विस्तीर्णाक्षी नृपस्त्री प्रथमसुजननेऽभूत्ततो नारकी च, मार्जारः शूकरो वा शुनक इति ततः कुर्कटः शूद्रकन्या । ब्रह्मे स्वर्गे सुदेवो व्रतननिसुकृतादगौतमो विप्रसूनुः,संजातास्त्वस्य शिष्याः बहुलशतमिता धर्मतः किं हि न स्यात् ॥ २६१ ॥ मानस्तंभ प्रदृष्ट्वा गतनिखिलमदोऽभूच यो योगिराजो, वीरस्यांते प्रसिद्धःप्रवरगणधरस्त्यक्तसर्वप्रसंगः । श्रेयो वृष्टिं ततानः शुभननसुखदां पापतापप्रणाशां,

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