Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 202
________________ पांचवां अधिकार | [ १६३. एक पल्यकी है और आगेके लिये यह नियम है कि जो आयु नीचेके स्वर्गमें उत्कृष्ट है वह उससे आगेके स्वर्गमें जघन्य होजाती हैं। पहले दूसरेकी उत्कृष्ट आयु तीसरे चौथेमें जघन्य है, तीसरे चौथेकी उत्कृष्ट आयु पांचवें छठे में जघन्य है । यही क्रम ऊपर तक चला गया है || २२७|| पहले दूसरे स्वर्ग देवोंके शरीरकी उँचाई सात हाथ है, तीसरे चौथेमें छह हाथ, पांचवें छठे सातवें आठवें में पांच हाथ, नौवें दशवें ग्यारहवें बारहवें में चार हाथ, तेरहवें चौदहवें में साढ़े तीन हाथ, पंद्रहवें सोलहवें में तीन हाथ, पहले तीन ग्रैवेयकोंमें ढाई हाथ, मध्यकी तीन ग्रैवेयकों में दो हाथ, ऊपर की तीन ग्रैवेयकोंमें और नौ अनुदिशों में डेढ़ हाथ और पांचों अनुत्तरों में एक हाथ उन देवोंके शरीर की उँचाई है || २२८ - २२९ ॥ पहले और दूसरे स्वर्गके देवोंका अवधिज्ञान पहले नरक तक है, तीसरे चौथे स्वर्गके देवोंका अवधिज्ञान दूसरे नरक तक है, पांचवें छठे सातवें आठवें स्वर्गके देवोंका अवधिज्ञान तीसरे नरकतक है, नौवें दशवें ग्यारहवें बारहवें स्वर्गके देवोंका अवधिज्ञान चौथे नरक तक है, तेरहवें चौदहवें पंद्रहवें सोलहवें स्वर्गके देवोंका अवविज्ञान पांचवें नरकतक है, नव ग्रैवेयकके देवोंका अवधिज्ञान योत्कृष्टा तृतीयादिषु सावरा ॥ २२७॥ सप्त हस्तोच्छ्रिता देवा सौधर्मेशानयोस्ततः । षट् युगे पंच तुर्येषु चतुर्षु चतुरः क्रमात् ॥२२८॥ द्विके सार्द्धत्रयो युग्मे त्रयः सार्द्धद्वयं त्रिके । इयं एकोऽर्द्ध एकच चतुर्दशसु वै क्रमात् ॥ २२९ ॥ आदिद्विस्वर्गदेवानां घर्मतं विषयोऽवधेः । वंशांतं परयोश्चासावा मेघायाश्चतुः परे ॥ २३० ॥ चतुष्टयें १३

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