Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 179
________________ १७०] गौतमचरित्र। समय नाभि काटनेकी विधि बतलाई थी॥१००-१०३॥ ये सब कुलकर अपने अपने नामके अनुसार गुणोंको धारण करनेवाले थे तथा ये सब एक एक पुत्रको उत्पन्न कर और प्रजाको सदबुद्धि देकर स्वर्गको सिधारे थे ॥१०४॥ जिससमय तीसरेकालमें तीन वर्ष साडेआठ महीने अधिक चौरासीलाख पूर्व वाकी रहे थे उससमय युगलियाधर्मको दूर करनेवाले मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान इन तीनों ज्ञानोंसे सुशोभित, समस्त प्रजाके स्वामी और तीनों लोकोंके इंद्रोंके द्वारा पूज्य ऐसे श्रीषभदेव तीर्थकर उत्पन्न हुए थे॥१०५-१०६॥ श्रीषभदेव, अजितनाथ, शंभवनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चंद्रप्रभ, पुष्पदंत, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, बासुपूज्य, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्द्धमान ये चौवीस तीर्थंकर चौथे कालमें उत्पन्न हुए हैं। ये सब तीर्थंकर कामदेवको भी जीतनेवाले कुलकरो जातः सः चतुर्दशमः क्रमात् । पूर्वकोटिस्थिति भिच्छेदकत् सुखदायकः ॥ १०३ ॥ एकैकं पुत्रमुत्पाद्य विश्वे कुलकरा गताः । स्वर्ग दत्वा प्रजाबुद्धिं स्वनामगुणधारकाः ॥१०४॥ चतुरशीतिलक्षाणां पूर्वे तस्यावसंस्थिते । शेषे त्र्यव्दाष्टमासाईमाससमा युते तदा ॥१०॥ तीर्थेशो वृषभो जातो युग्मधर्मनिवारकः । ज्ञानत्रयी प्रजाधीशस्त्रिभुवनेंद्रपूजितः॥१०६॥ वृषभोऽजितसंज्ञश्च शंभवश्वाभिनंदनः। सुमतिः पद्मदीप्तिश्च सुपार्श्वश्चंद्रनायकः ॥ १०७ ॥ पुष्पदंताभिधः स्वामी शीतलस्तीर्थकारकः । श्रेयान् श्रीवासुपूज्यश्च विमलोऽनन्तनिजिनः

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