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गौतमचरित्र। करेंगे ॥१९१॥ विवाहके संस्कारसे भी वे रहित होंगे, स्वामी सेवक भाव भी उनमें नहीं होगा, उनका शरीर कुरूप होगा
और उनके सब अङ्ग कुरूप होंगे। छठे कालमें लोग सदा ऐसे ही होंगे ॥१९२॥ जिसप्रकार कृष्णपक्षमें चंद्रमाकी घटती होती रहती है और शुक्लपक्षमें वृद्धि होती रहती है उसीप्रकार इन अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी कालमें जीवोंकी आयु, शरीरकी ऊँचाई, प्रभाव, ऐश्वर्य आदिकी घटती बढ़ती होती रहती है ॥१९३॥ जिसप्रकार धर्म और उत्सवोंके कार्य रात्रिमें कम होजाते हैं और दिनमें बढ़ जाते हैं उसीप्रकार इन उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालमें भी धार्मिक उत्सवोंकी वृद्धि हानि होती रहती है ॥१९४॥ जिसप्रकार अवसर्पिणी कालमें अनुक्रमसे होनेवाली हानि बतलाई है उसीप्रकार हे राजा श्रेणिक ! उत्सर्पिणीकालमें अनुक्रमसे वृद्धि समझनी चाहिये ॥१९॥ इसप्रकार मुनि और श्रावकोंके भेदसे दो प्रकारका धर्म बतलाया है। इनमेंसे मुनियोंका धर्म मोक्ष देनेवाला है और श्रावकोंका धर्म स्वर्गको देनेवाला है ॥१९६॥ ये दोनों प्रकारके धर्म फलाशिनः ॥ १९१ ॥ विवाहविधिसंत्यक्ता रहिताः स्वामिदासकैः । भविष्यंति नरा नित्यं विरूपनिखिलांगकाः ॥ १९२ ॥ हानिवृद्धी यथेन्दोः स्तः श्यामावदातपक्षयोः। आयुर्वपुः प्रमादीनां विज्ञातव्यौ तथैतयोः ॥ १९३ ॥ धर्ममहोत्सवादीनां हानिवृद्धी यथा मते । निशादिवसयो ये तथानयोरनेहसोः ॥१९४॥ स्थितियथावसर्पियो क्रमेण परिकीर्तिता। तथा चोत्सर्पिणीकाले वृद्धिर्जेया महीपते ॥१९५॥ स धर्मो द्विविधः प्रोक्तो यतिश्रावकभेदतः । प्रथमो मुक्तिदः