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पांचवां अधिकार।
[१८७ सुख देनेवाले हैं। इनका स्वरूप तुम्हारे लिये कहा अब नरक स्वर्गका हाल बतलाते हैं । पापकर्मके उदयसे यह जीव नरक में जाता है और वहांपर पांच प्रकारके दुःख सदा भोगता रहता है ॥१९७॥ अधोलोककी सात पृथिवियोंमें सात नरक हैं उनके नाम ये हैं-धर्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्टा, मघवी, माधवी ॥ १९८ ॥ इन सातों नरकोंमें चौरासीलाख बिले हैं और वे इस क्रमसे हैं । पहिली पृथ्वीमें तीसलाख, दूसरीमें पच्चीसलाख, तीसरीमें पंद्रहलाख, चौथीमें दश लाख, पांचवीमें तीन लाख, छठीमें पांच कम एक लाख और सातवीं में पांच॥१९९॥पहिली पृथ्वीमें रहनेवाले नारकी जीवोंके जघन्य कापोती लेश्या है, दूसरी पृथ्वीमें रहनेवाले नारकी जीवोंके मध्यम कापोती लेश्या है। तीसरी पृथ्वीके ऊपरी आधे भागमें उत्कृष्ट कापोती लेश्या है, उसी तीसरी पृथ्वीके नीचेके आधे भागमें जघन्य नील लेश्या है, चौथी पृथ्वीके नारकियोंके मध्यम नीललेश्या है, पांचवीं पृथ्वीके ऊपरी भागमें उत्कृष्ट नीललेश्या है, उसी पांचवीं पृथ्वीके नीचेके भागमें जघन्य कांतो द्वितीयो स्वर्गदायकः ॥१९६॥ तौ धर्मों प्रथमं प्रोक्तौ युष्मभ्यं सुखकारिणौ । किल्विषान्नरकं याति पंचधा यत्र दुःखकम् ॥१९॥ धर्मा वंशा तथा मेघांजनारिष्टा यथाक्रमम् । मघवी माधवी ज्ञेया तत्र च सप्त मेदिनी ॥१९८॥ त्रिशत्पंचकृतिः पंचदश दश क्रमात्रिका। लक्षका चाऽपि पंचोना पंच नारकभेदकाः ॥ १९९ ॥ आद्यभूमौ च । जीवानामंत्यकापोतलेश्यकाः । मध्यमा च द्वितीयायां तृतीयोऽढे तमा पराः ॥ २० ॥ तस्यामधो परा नीला चतुर्थ्या मध्यमा तथा ।