Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 188
________________ पांचवां अधिकार। [१७६ अजितनाथके समयमें हुआ, तीसरा और चौथा ये दो चक्रवर्ती श्रीधर्मनाथ और शांतिनाथके मध्यकालमें हुए, पांचवें चक्रवर्ती शांतिनाथ थे, छठे चक्रवर्ती कुंथुनाथ थे, सातवें चक्रवर्ती अरनाथ थे, आठवां चक्रवर्ती अरनाथ और माल्लिनाथके मध्यकालमें हुआ, नौवां चक्रवर्ती मल्लिनाथ और मुव्रतनाथके मध्यकालमें हुआ, दशवां चक्रवर्ती सुव्रतनाथ और नमिनाथके मध्यकालमें हुआ, ग्यारहवां चक्रवर्ती नमिनाथ और नेमिनाथके मध्यकालमें हुआ और वारहवां चक्रवर्ती नेमिनाथ और पार्श्वनाथके मध्यकालमें हुआ॥१५२-१५४॥ अश्वग्रीव, तारक, मेरु, निशुंभ, मधुकैटभ, बलि, प्रहरण (प्रल्हाद), रावण, जरासंध ये नौ नारायणोंके नाम हैं ॥१५५॥ त्रिपृष्ट, द्विपृष्ट, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, प्रतापी नरसिंह, पुंडरीक, दत्त, लक्ष्मण, कृष्ण ये नौ प्रतिनारायणोंके नाम हैं। नारायण और प्रतिनारायण दोनों ही अर्द्धचक्रवर्ती होते हैं, निदानसे उत्पन्न होते हैं और इसलिये सब नरकगामी होते हैं ॥ १५६-१५७ ॥ थेऽभूद द्वौ धर्मशांतिमध्यके ॥ १५२ ॥ शांतिकुंथ्वरचक्रांकायष्टमो. मल्ल्यरांतरे । मल्लिसुव्रतयोमध्ये नवमः परिकीर्तितः ॥१५३॥ नमिसुव्रतनाथांते दशमो नमिनेमयोः । एकादशम चक्रेशो नेमिपावतिरेऽतिम ॥१५४॥ अश्वग्रीवस्तारमेरू निशुम्भो मधुकैटभः । बलिः प्रहरणो ज्ञेयो रावणो जरासंधकः ॥१५५॥ त्रिष्टष्टश्च द्विष्टष्टश्च स्वयंभू पुरुषोत्तमः । नरसिंहः प्रतापाढ्यः पुंडरीकश्च दत्तकः ॥१५६॥ नारायणस्तथा कृष्णो नवाईचक्रिणो मताः। अधोगाः केशवाश्चापि निदानात्प्रतिशत्रवः ॥ १५७ ॥ प्रथमो विनयोऽभिख्योऽचलः सुधर्मसुप्रभौ ।

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