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गौतमचरित्र |
ब्रह्मदत्त ये बारह चक्रवर्तियों के नाम हैं ।। १४६-१४७ ॥ ये सब चक्रवर्ती भरतक्षेत्रके छहों खंडों के स्वामी होते हैं, नौनिधि और चौदह रत्नोंके स्वामी होते हैं तथा अनेक देव और अनेक राजा उनके चरणकमलोंकी सेवा करते हैं ॥ १४८ ॥ पांडुक, माणत्र, काल, नैःसर्प, शंख, पिंगल, सर्वरत्न, महाकाल और पद्म ये चक्रवर्तियों के यहां रहनेवाली नौ निधियों के नाम हैं ॥ १४९ ॥ चक्र, तलवार, काकिणी, दंड, छत्र, चर्म, पुरोहित, गृहपति, स्थपति, स्त्री, हाथी, मणि, सेनापति, घोड़ा ये चक्रवर्तीके यहां होनेवाले चौदह रत्नों के नाम हैं ।। १५० ।। इन बारह चक्रवर्तियों में से सुभूम और ब्रह्मदत्त ये दो चक्रवर्ती मरकर सातवें नरक में गये हैं, मघवा और सनत्कुमार ये दो चक्रवर्ती स्वर्ग गये हैं और बाकी आठ चक्रवर्ती मोक्ष पधारे हैं ।। १५५ ॥ इन चक्रवतियों के होनेका अन्तर नीचे लिखे अनुसार है । पहला चक्रवर्ती श्रीवृषभदेव के समयमें हुआ, दूसरा चक्रवर्ती श्री॥ १४६ ॥ यथाक्रमं महापद्मो हरिषेणो जयस्तथा । ब्रह्मदत्त इमे ज्ञेया द्वादश चक्रवर्तिनः ॥ १४७ ॥ षट्खंडभरताधीशा निधिरत्नादिसंयुताः । अनेकदेवभूपालैः सेवितपदपंकजाः ॥ १४८ ॥ पांडको - माणवः कालो नैः सर्पः शंखपिंगलौ । सर्वरत्नो महाकाल: पद्मश्च निधयो नव ॥ १४९ ॥ चक्रासिकाकिणीदंडाः छत्रचर्म पुरोधसः । गृहेशस्थपतिस्त्रीमा मणिसेनाहया मताः ॥ १५० ॥ सुभूमब्रह्मदत्तौ द्वासप्तमनरकं गतौ । कल्पं मघवतुर्येौ द्वौ शेषाः शिवपदाश्रिताः ॥ १५१ ॥ चक्रिणामंतरं विद्धि प्रथमो वृषशासने । द्वितीयोऽजितती