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तीसरा अधिकार ।.
[ ८६ श्रावक श्राविकाओंके साथ तथा उन तीनों कन्याओंके साथ सुख देनेवाला लब्धिविधान नामका वह व्रत धारण किया ||२५|| सो ठीक ही है क्योंकि जो निकट भव्य हैं, मोक्षप्राप्ति जिनके समीप हैं वे देर नहीं करते हैं । संसारी जीवोंकी जैसी होनहार होती है वैसी ही उनकी बुद्धि हो जाती है ||५६|| मुनिराजके उपदेशके अनुसार श्रावकोंकी सहायतासे उन तीनों कन्याओंने उद्यापन क्रियाके साथ साथ वह लब्धिविधान व्रत किया ||५७|| उन तीनों कन्याओंने श्रावकोंके व्रत धारण किये, उत्तमक्षमा आदि दशधर्म धारण किये और शीलवत धारण किया || ५८ || कुछ काल व्यतीत हो जानेपर उन तीनों कन्याओंने जिन मंदिरमें जाकर मन बचन कायकी शुद्धतापूर्वक भगवान् जिनेंद्रदेवकी बड़ी पूजाकी ॥५९॥ तदनंतर आयु पूर्ण होनेपर उन तीनों कन्याओंने समाधिमरण धारण किया, भगवान अरहंतदेवके बीजाक्षरोंका स्मरण किया और मुनिराज के चरणकमलोंको नमस्कार किया समाकर्ण्य भूपेन नागरैः सह । कन्याभिः श्राविकामिश्र सुखदं जगृहे व्रतम् ॥५५॥ येषां सिद्धिः समासन्ना ते बिलंब न कुर्वते । यादृशी भवतालोके बुद्धिर्भवेद्धि तादृशी ॥ ५६ ॥ तिस्रोपि तदव्रतं चकुरुद्यापन क्रियायुतम् । मुनिराजोपदेशेन श्रावकाणां सहायतः ॥५७॥ श्रावकव्रतसंयुक्ता बभूवुस्ताश्च कन्यकाः । क्षमादिव्रतसंकीर्णाः शीलांपरिभूषिताः ||१८|| कियत्काले गते कन्या आसाद्य जिनमंदिरम् । सपर्या महता चकुर्मनोवाक्कायशुद्धितः ॥ ५९ ॥ ततः आयुक्षये कन्याः कृत्वा समाधिपंचताम् । अहंडीजाक्षरं स्मृत्वा गुरुपादं प्रणम्य च ॥६०॥
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