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गौतमचरित्र। वे निधि और रत्नोंके स्वामी होते हैं, अत्यंत मनोहर होते हैं और चारों प्रकारके देव उन्हें नमस्कार करते हैं ॥२००२०३ ॥ इस सम्यग्दर्शनके प्रभावसे मनुष्य तपश्चरणरूपी तलवारसे कर्मरूपी शत्रुओंके समूहको नाशकर, दो तीन भवमें ही मुक्त होजाते हैं ॥२०४॥ जहांपर इन देव, शास्त्र, गुरुकी निंदा की जाती है उसे मिथ्यादर्शन कहते हैं । इस मिथ्यादर्शनके प्रभावसे मनुष्योंको नरकादि कुयोनियों में पड़ना पड़ता है । २०५ ॥ इस मिथ्यादर्शनके प्रभावसे जीव काने होते है, कुबड़े होते हैं, टेढ़े होते हैं, लंगड़े होते हैं, नकटे होते हैं, बौने होते हैं, बहरे होते हैं, गूंगे होते हैं, कोढ़ आदि अनेक रोगोंसे दुखी होते हैं, थोड़ी आयु पाते हैं, उनसे कोई स्नेह नहीं करता, वे पापी होते हैं, दरिद्री होते हैं, उन्हें बुरी स्त्री मिलती है, उनके पुत्र कुपुत्र होते हैं, वे दीन और दूसरोंके सेवक होते हैं और संसारमें सदा उनकी अपकीर्ति फैलती रहती है । इस मिथ्यादर्शनके ही प्रभावसे भूत, पिशाच, यक्ष, राक्षस आदि नीच व्यतर देव होते हैं, कौवा बिल्ली, सूअर रत्ननिधिसमन्विताः । सुरासुरनताः कांताः स्युः सम्यक्त्वयुताः नराः ॥२०३॥ तपःखड्गेन संहत्य कर्मसपत्नसंचयम् । द्विःत्रिभवैः शिवं यांति दर्शनव्रततो नराः ॥ २०४ ॥ एतेषां गर्हणा यत्र तन्मिथ्यादर्शनं मतम् । पंतति प्राणिनस्तस्मान्नरकादिकुयोनिषु ॥ २०५ ॥ काणाः कुब्नास्तथा वक्राः पंगवो गतनाशिकाः । बामना वधिरा मूकाः कुष्टादिरोगसंयुताः ॥२०६॥ अल्पायुषो गतस्नेहाः पापाढ्या धनवजिताः । कुस्त्रियः कुसुता दीनाः परभृत्या अकीर्तयः ॥ २०७॥