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गौतमचरित्र। संकोच होने और फैलनेकी शक्ति है । इसीलिये वह छोटे बड़े शरीरमें जाकर शरीरके आकारका होजाता है। शरीर, बचन, मन और श्वासोच्छ्वास पुद्गलके उपकार हैं। पुद्गल इनके द्वारा जीवोंका उपकार करता है ॥ ३० ॥ जिसप्रकार मछलियोंके चलने में जल सहायक होता है उसी प्रकार जीव तथा पुद्गलोंके चललेनेमें धर्मद्रव्य सहायक होता है तथा जिसप्रकार पथिकोंके ठहरनेके लिये छाया सहायक होती है उसी प्रकार जीव व पुदलोंके ठहरनेमें अधर्म द्रव्य सहायक होता है ॥३१॥ द्रव्योंके परिवर्तन होने में जो कारण है उसको काल कहते हैं। वह क्रिया, परिणमन, परत्वापरत्व (छोटा बड़ापन) इनसे जाना जाता है। अर्थात् क्रिया ( हवा वादकोंका चलना ) परिणमन (रूपांतर होना) और परत्वापरत्व (१५ वर्षका बड़ा १० वर्षका छोटा) यह कालका उपकार है । सब द्रव्योंको अवकाश देना आकाशद्रव्यका उपकार है ॥ ३२ ॥ द्रव्यका लक्षण सत् है । जो प्रतिक्षण उत्पन्न होता हो, नष्ट होता हो और ज्योंका सों बना रहता हो उसे सत् कहते हैं। प्रदेशकाः । पुद्गलानां त्रयोऽनंताः स्वस्य कालस्य चैककः ॥ २९ ॥ प्रसंहारविसर्पाभ्यां प्रदेशानां प्रदीपवत् । जीवः शरीरवाञ्चित्तपाणापानाश्च पुद्गले ॥ ३० ॥ धर्माधर्मी गतिस्थित्योर्जीवपुद्गलयोर्मतौ । जलछाये यथा मत्स्यपाथयोः सहकारिणौ ॥३१॥ द्रव्यप्रवर्तनारूपपरत्वापरत्वेन च । अनुमेयश्च कालोऽयमाकाशं चावगाहनम् ॥३२॥ गुणपर्ययवद्ध्रौव्योत्पादव्यययुतं च सत् । तदद्रव्यलक्षणं शुद्धं श्रीसवैज्ञेन भाषितम् ॥३३॥ शरीरवाङ्मनःकर्म योगौ यौ च शुभाशुभौ ।