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पांचवां अधिकार ।
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अथवा जिसमें गुण हों और पर्यायें हों उसको द्रव्य कहते हैं। संसार में जितने पदार्थ हैं उन सबकी पर्यायें बदलती रहती हैं । पर्यायोंका बदलना ही उत्पाद व्यय है तथा 1 द्रव्यमें गुण सदा बने रहते हैं इसलिये गुणोंकी अपेक्षासे द्रव्यमें धौव्यपना रहता है । इसप्रकार जिसमें गुण पर्याय हों अथवा उत्पाद, व्यय, धौव्य हों उसको द्रव्य कहते हैं ऐसा श्रीसर्वज्ञदेवने कहा है ॥ ३३ ॥ मन, बचन, शरीरकी क्रियाको योग कहते हैं । वह योग शुभ और अशुभके भेदसे दो प्रकारका है । शुभयोग अर्थात् मन, बचन, कायकी शुभ क्रियाओंको पुण्य कहते हैं और अशुभयोग वा अशुभ क्रियाओंको पाप कहते हैं ||३४|| मिथ्यात्व, अविरत, योग और कषायोंसे जो कर्म आते हैं उसे आस्रव कहते हैं । इनमें से मिथ्यात्व पांच प्रकारका है, अविरत बारह प्रकारका है, योग पंद्रह प्रकारका है और कषायके पच्चीस भेद हैं ||३५|| एकांत, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान ये पांच मिथ्यात्व के भेद कहलाते हैं || ३६ || छह प्रकार के जीवोंकी रक्षा न करना और पांचों इंद्रिय तथा मनको वशमें न करना, इंद्रियोंके विषयों में लगे रहना, इसप्रकार असंयमके पुण्यपापास्रवौ ज्ञेयौ तौ सर्वज्ञेन भाषितौ ॥ ३४ ॥ मिथ्यात्वाविरतेर्यो - गात्कषायादास्रवो भवेत्। पंचद्वादशतद्भेदाः सप्ताष्टौ पंचविंशतिः॥३५॥ एकांतो विपरीतश्च विनयः संशयस्तथा । अज्ञानं चेति मिथ्यात्वं पंचविधं प्रकीर्तितम् ॥ ३६ ॥ षड्जी बकायपंचाक्षसनो विषयभेदतः असंयमो जिनाधीशैः संप्रोक्तो द्वादशो विधः ॥ ३७ ॥ सत्यासत्योभयानां