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गौतमचरित्र ।
और पुल्लिंग दो ही लिंगोंको धारण करनेवाले होते हैं ।। १८ ।। एकेंद्रिय, दो इंद्रिय, ते इंद्रिय, चौइंद्रिय, सम्मूर्च्छनपंचेंद्रिय और नारकी ये सब नपुंसकलिंग ही होते हैं ऐसा श्रीसर्वज्ञदेवने कहा है ।। ९९ ।। एकेंद्रिय, दोइंद्रिय, ते इंद्रिय, चौ इंद्रिय इनके अनेक संस्थान होते हैं और सदा दुःखी रहनेवाले नारकियोंके हुडक संस्थान होता है || २० ॥ देव और भोगभूमियोंके समचतुरस्र संस्थान होता है और बाकी मनुष्य व तिर्यचोंके छहों संस्थान होते हैं ॥ २१ ॥ उत्कृष्ट स्थिति ( सबसे अधिक आयु ) देव नारकियोंकी तीस सागर है, व्यन्तर व ज्योतिषियोंकी एक पल्य है, भवनवासियोंकी एक सागर है ||२२|| प्रत्येक वनस्पतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्ष है और सूक्ष्म वनस्पतियोंकी ( साधारणवनस्पतियोंकी) अन्तर्मुहूर्त है || २३ ॥ पृथ्वीकायिक जीवोंकी बाईस हजार वर्ष है, जलकायिक, जीवोंकी सात हजार वर्ष है, वायुकायिक जीवोंकी तीन हजार वर्ष है और अग्निकायिक द्विवेदाः ॥ १८ ॥ एकाक्षा हुंडसंस्थाना विकलाक्षा नपुंसकाः । सम्मूर्च्छनाश्र पंचाक्षाः श्रीसर्वज्ञेन भाषिताः ॥ १९॥ एकाक्षा विकलाक्षाश्च बहुसंस्थानधारिणः । नारका हुंडसंस्थाना ज्ञातव्या दुःखिताः सदा ॥२०॥ समेन चतुरस्रेण संस्थानेन युताः सुराः । भोगभूजाश्व तिर्यच षट्संस्थानभृतो नराः ॥ २१ ॥ स्थितिर्नारकदेवानां त्रयस्त्रिशत्पराब्धयः । व्यंतरज्योतिषां पल्यं वार्द्धिर्भवनवासिनाम् ॥ २२ ॥ समा दशसहस्राणि सत्प्रत्येकबनस्पतेः । परा स्थिति सूक्ष्माणामंतमुहूर्त इष्यते ॥ २३ ॥ द्वाविंशतिसहस्राणि सप्त च भूमिवारिणाम् ।