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पांचवां अधिकार ।
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सदा जन्ममरणके दुःख भोगा करते हैं ।। १३ ।। नारकियों की चार लाख योनियां हैं, ये परस्पर एक दूसरेको दुःख दिया करते हैं, क्षेत्रसंबंधी शीत और उष्णताके दुःख भोगा करते हैं, मानसिक व शारीरिक दुःख भोगा करते हैं और असुर कुमारदेवों के द्वारा दिये हुए दुःख भोगा करते हैं । इसप्रकार पांच प्रकारके दुःख नारकी सदा भोगा करते हैं ॥ १४ ॥ तिर्यचोंकी चार लाख योनियां हैं ये तिर्यंच भी बांधना, मारना, छेदना, भूख, प्यास, बोझाढोना, आदि अनेक प्रकारके दुःख भोगते हुए इन योनियों में परिभ्रमण किया करते हैं || १५ || मनुष्योंकी चौदह लाख योनियां हैं । इन योनियों में परिभ्रमण करते हुए मनुष्य भी इष्टवियोग और अनिष्टंसयोगसे उत्पन्न हुए अनेक प्रकारके दुःख भोगा करते हैं । ॥ १६ ॥ इसीप्रकार देवोंकी चार लाख योनियां हैं इनमें परिभ्रमण करते हुए देव भी मानसिक दुःख भोगा करते हैं । हे राजन् ! इस संसार में कहीं भी सुख नहीं है | १७ || गर्भ से उत्पन्न हुए स्त्री पुरुष, स्त्रीलिंग, पुल्लिंग, नपुंसकलिंग तीनों लिंगोंको धारण करनेवाले होते हैं, देव और भोगभूमियां स्त्रीलिंग हृत्क्षेत्रजातं परस्पराहतम् । दुःखं पंचविधं भुंक्ते चतुर्लक्षासु नार ॥ १४ ॥ तिर्यग्गतौ चतुर्लक्षे दुःखं भुक्ते निरंतरम् । बधबंधन छेदोत्थं क्षुत्तृषाभारधारणम् ॥१५॥ इष्ट वियोगतो जातं दुःखमनिष्टयोगतः । स चतुर्दशलक्षासु लभते मानुषे भवे ॥ १६ ॥ देवगतौ चतुर्लक्षे दुःख मानससंभवम् । स महीनाथ ! कुत्रापि नास्ति शातं च संसृतौ ॥१७॥ 'गर्भजा नरतिर्यंच स्त्रि वेदगाच कल्पजाः । भोगभूमिसमुद्भूताः प्रभवंति