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चौथा अधिकार।
[१४७ इसी बारहवें गुणस्थानके अन्तिम समयमें पांचों ज्ञानावरण, शेषकी चारों दर्शनावरण और पांचों अन्तराय कर्म नष्ट किये ॥१४६-२४९ ॥ इसप्रकार तिरेसठ प्रकृतियोंको नष्ट कर वे गौतम मुनिराम केवलज्ञानको पाकर तेरहवें गुणस्थानमें जा बिराजमान हुए। वहांपर उन्हें अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य ये चारों अनन्तचतुष्टय प्राप्त हुए ॥२५०॥ उसी समय देवोंने गंधकुटीकी रचना की, उसमें वे केवली भगवान विराजमान हुए और इन्द्रादिक सब देव उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार करने लगे ॥२५॥ सब मुनिराज, गणधर और राजाओंने बड़ी भक्तिसे श्रीगौतमस्वामीकी पूजा की, उन्हें नमस्कार किया और फिर वे सब अपने अपने योग्य स्थानपर बैठ गये ॥२५२।। जिन गौतमस्वामीने अलोक सहित तीनों लोकोंको देखा है, जिन्होंने विषयोंका समुदाय सब नष्ट कर दिया है, जिन्होंने कामदेवको लीलापूर्वक नाश कर डाला है और जो ब्राह्मणवंशको सुशोभित करनेके लिये मणिके समान हैं ऐसे वे केवली भगवान श्रीगौतम-. लोभं संज्वलनं सूक्ष्मे संहत्य द्वादशे गुणे । निद्रायुग्मं तथा विघ्नं सर्वावरणमाक्षिपत्॥२४९॥ क्रमेण केवलज्ञानं प्राप्य त्रयोदशं गुणम्। रुरोह गौतमो योग्यनंतज्ञानादिसंयुतः ॥ २५० ॥ देवनिर्मापितायां वै गंधकुट्यां प्रसंस्थितम् । भक्त्या केवलिन नेमुः शक्राद्या निर्जरास्ततः ॥ २५१ ॥ अर्चयित्वा महाभक्त्या प्रणम्य स्वामिनं जिनम् । मुनीद्राः गणिनो भूपा यथास्थानमुपाविशन् ॥ २५२ ॥ दृष्टं येन जगत्रयं हि तरसा सालोकमुन्मीलितो, येनाहो विषयव्रनो रतिप