Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 157
________________ १४८] गौतमचरित्र। स्वामी तुम लोगोंको शुभ और मोक्ष प्रदान करनेवाला भव्यज्ञान अर्थात् केवलज्ञान सदा देते रहें । इसप्रकार मंडलाचार्य श्रीधर्मचंद्रविरचित श्रीगौतमस्वामी चरित्रमें श्रीगौतमस्वामीके केवलज्ञानकी उत्पत्तिको वर्णन करनेवाला यह चौथा अधिकार समाप्त हुआ। BEEEEEN अथ पांचवां अधिकार । तदनन्तर परवादीरूपी हाथियोंके लिये सिंहके समान वे भगवान गौतमस्वामी भव्यजीवोंको आत्मज्ञान उत्पन्न करनेवाली उत्तम सरस्वतीको प्रगट करने लगे अर्थात् उनकी दिव्यध्वनि खिरने लगी ॥१॥ दिव्यध्वनिमें प्रगट हुआ कि श्रीजिनेन्द्रदेवने जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व निरूपण किये हैं ॥ २॥ जो अंतरंग और बहिरङ्ग प्राणोंसे पहले भवोंमें जीता था, अब भी जीता है और आगे भी जीवेगा उसे जीव कहते हैं। "तिव॑सीकतो हेलया । येन ब्राह्मणवंशमंडनमणिर्मुक्तिप्रदं वः शुभं, सोऽयं गौतमकेवली प्रकुरुतां भव्यप्रबोधं सदा ॥२५३॥ इति श्रीगौतमस्वामिचरिते श्रीगौतमकेवलज्ञानोत्पतिवर्णनं नाम चतुर्थोऽधिकारः । अथासौ गौतमो योगी जगौ सरस्वतीं वराम् । परवादीभपंचास्यो भव्यजीवप्रबोधिनीम् ॥१॥जीवाजीवास्रवबंधसंवरनिर्जरास्तथा। मोक्षश्च सप्ततत्त्वानि प्रोक्तानि श्रीजिनेश्वरैः ॥ २ ॥ पूर्वभवांतरे

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