________________
१३६]
गौतमचरित्र। अर्थात् उसीको जिनवाणी कहते हैं ॥ १९३ ॥ जिसप्रकार सूर्यके उदय हुए विना संसारके पदार्थ दिखाई नहीं देते उसी प्रकार भगवान जिनेंद्रदेवके वचनोंके बिना कभी ज्ञान नहीं हो सकता ॥१९.४॥ इसप्रकार कहे हुए देव, शास्त्र, गुरुका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन कहलाता है । यह सम्यग्दर्शन मोक्षमार्गके लिये पाथेय (टोसा-मार्गमें खाने योग्य पदार्थ) है और नरकादि दुर्गतियोंके द्वार बन्द करनेके लिये मजबूत अर्गल (दरवाजेके भीतर किवाड़ोंके पीछे लगी हुई मोटी लकड़ी) है ॥१९५॥ बुद्धिमान पुरुष बोधि शब्दसे सम्यग्दर्शनरूपी रत्नका ही ग्रहण करते हैं। यह सम्यग्दर्शनरूपी रत्न मूर्यके विंबके समान अज्ञानरूपी अन्धकारका नाश करनेवाला है और मिथ्यानयोंका क्षय करनेवाला है ॥ १९६ ॥ जिसप्रकार ज्योतिके बिना नेत्र शोभायमान नहीं होते, पीके विना भोजन शोभायमान नहीं होता और रात्रि चंद्रमाके बिना शोभायमान नहीं होती उसीप्रकार विना सम्यग्दर्शनके व्रत भी शोभायमान नहीं होते ॥ १९७॥ जिस प्रकार देवोंमें इन्द्र श्रेष्ठ है, तम् । धर्माधर्मफलं यत्र जिनवचो बुधैः स्मृतम् ।।१९३॥ जिनवचो विना बोधो न भवति कदाचन । सूर्योदयं विना लोके यथा पदार्थदर्शनम् ॥ १९४ ॥ एतेषु निश्चयो यत्र तत्सम्यक्त्वमुदीरितम् पाथेयं मुक्तिमार्गस्य दुर्गतिहाईढार्गलम् ॥ १९५ ॥ बोधिद्रव्येण सम्यक्त्वरत्नं गृह्णन्ति सद्धियः । अहंस्तमो रवेःबिंब दुर्नयक्षयकारकम् ॥ १९६ ॥ ज्योतिर्विना यथा नेत्रमघृतं भोजनं यथा । न शोभते निशाऽसोमा सम्यक्त्वेन विना व्रतम् ॥ १९७ ॥ शक्रः श्रेष्ठोऽस्ति