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गौतमचरित्र। देना चाहिये ॥ ४९ ॥ छहों प्रकारके जीवोंको अभयदान देना चाहिये जिससे कि सिंह व्याघ्र आदि किसीका भी भय न रहे ॥२०॥ जो कोढी हैं, अथवा किसी पेटके रोगसे दुःखी हैं अथवा स्वांस, वात, पित्त आदिके रोगोंसे दुःखी हैं उनके लिये विद्वानोंको यथायोग्य शुद्ध औषधि देनी चाहिये ॥५१ ।। जिनके पास उद्यापनके लिये इतनी सामग्री न हो उन्हें केवल भक्ति ही करनी चाहिये और उस व्रतमें किसी प्रकारकी हीनाधिकता नहीं समझनी चाहिये क्योंकि पुण्य सम्पादन करनेके जीवोंके भाव ही कारण होते हैं इसलिये अपने भाव सदा शुद्ध रखने चाहिये ॥५२॥ जिन्हें उद्यापन करनेकी कुछ भी शक्ति न हो उन्हें उतना ही फल प्राप्त करनेके लिये दूने दिनतक अर्थात् छह वर्ष तक यह व्रत करना चाहिये ॥५३ ॥ पहले यह व्रत श्रीषभदेवस्वामीके पुत्र अनंतवीरने किया था उसकी कथा आदिनाथपुराणमें प्रसिद्ध हैं ॥५४॥ इसप्रकार मुनिराजके बचन सुनकर राजाने अनेक पीडिताः । नरा नार्योऽथवा तेभ्यो दयार्थ दीयतेऽशनम् ॥ ४९ ॥ षड्जीवकायवर्गेप्वभयं दानं प्रदीयते । येन व्याघ्रमृगेंद्रादेर्भयं न जायते क्वचित् ॥ ५० ॥ कुष्टोदरव्यथाश्वासवातपित्तादिपीडिताः । यथायोग्यं शुभं तेभ्यो विधेयं भेषनं बुधैः ॥ ५१ ॥ यस्यैतानि न पूर्यते तेन भक्तिर्विधीयते । चिंत्यं हीनाधिकं नैव पुण्यं भावो हि कारणम् ॥५२॥ यस्य प्रोद्यापने शक्ति किंचिच्च प्रजायते । तेनेदं द्विगुणं कार्य तत्प्रमाणफलाप्तये ॥५३॥ वृषभतनयानंतवीरेणेदं कृतं पुरा । आदिनाथपुराणे हि प्रसिद्ध तत्कथानकम् ॥२४॥ मुनिवचः