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गौतमचरित्र। होती ही है ॥५७॥ वे भमवान किसी एक दिन रात्रिके समय अतिमुक्त नामके श्मशानमें प्रतिमा योग धारण कर विराजमान थे उससमय भव नामके रुद्रने (महादेवने) उनपर बहुतसे उपसर्ग किये परन्तु वह उन्हें जीत न सका ॥५८॥ तब उसने आकर भगवानको नमस्कार किया तथा उनका 'महावीर' नाम रक्खा और फिर अपने घरको चला गया । इसप्रकार तपश्चरण करते हुए भगवानको जव वारह वर्ष बीतगये तव किसी एक दिन ऋजुकूल नामकी नदीके किनारे ज़ुभक नामके गांवमें वे भगवान षष्ठोपवास (तेला) धारण कर शामके समय एक शालवृक्षके नीचे किसी शिलापर विराजमान हुए । उस दिन वैशाख शुक्ला दशमीका दिन था। उसी दिन ध्यानरूपी अग्निसे घालिया कर्मोको नष्टकर उन भगवानने केवलज्ञान प्राप्त किया ॥ ५९-६१ ॥ केवलज्ञान होते ही शरीरकी छायाका न पडना आदि दश अतिशय प्रगट हो गये और चारों प्रकारके इंद्रादिक देवोंने आकर लोक अलोक सबको प्रकाशित करनेवाले उन भगनृपोऽवाप श्रियां हेतुः पात्रदानं हि धर्मिणाम् ॥ १७ ॥ निश्यतिमुक्तकाभिख्ये श्मशाने प्रतिमास्थितम् । तं नाशकद्भवो जेतुं वितन्वनुपसर्गकम् ॥ ५८ ॥ प्रणम्य तं महावीरं नाम कृत्वा निजालयम् । रुद्रो गतः सुदीक्षायां पूर्णद्वादशवत्सरम् ॥,५९ ॥ ऋजुकूलनदीकूले मुंभृकग्राममाप्य सः । शालमूलोपले तिष्ठत्सायं षष्ठोपवासकः ॥६०॥ -राधमास सिते पक्षे दशम्यां ध्यानवह्निना । घातिकर्माणि संदह्य केवलज्ञानमाप सः ॥६१॥अच्छायाधैर्गुणैर्युक्तं दशभिस्तं चतुर्विधाः।