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गौतमचरित्र ।
पदार्थैरंगप्रवेदमनिशं वद चास्तिकायम् । " कौन कौन हैं, तीन प्रकारका काल कौन सब कितने हैं ? छह द्रव्य कौन कौन हैं, उनमें काय सहित कौन कौन द्रव्य हैं, काल किसको कहते हैं, लेश्या कितनी और कौन कौन हैं ? तत्त्व कितने और कौन कौन हैं ? संयम कितने और कौन कौन हैं, गति कितनी और कौन कौन हैं ? पदार्थ कितने और कौन कौन हैं ? श्रुतज्ञानके अङ्ग कितने और कौन कौन हैं ? अनुयोग कितने और कौन कौन हैं और अस्तिकाय कितने और कौन कौन हैं ? इन सबको आप बतलाइये ॥ ९० ॥ इसप्रकार इन्द्रके द्वारा पढ़ा हुआ काव्य बुनकर गौतम कुछ खेदखिन्न हुआ और मनमें विचार करने लगा कि मैं इस काव्यका क्या अर्थ बतलाऊँ ? ॥ ९ १ ॥ अथवा इस बूढ़े ब्राह्मणके साथ बातचीत करनेसे कोई लाभ नहीं इसके गुरु के साथ वादविवाद करना चाहिये । इस प्रकार विचार कर वह इन्द्रसे कहने लगा सो ठीक ही है क्योंकि अपने अभिमानको भला कौन छोड़ देता है ||१२|| गौतमने इन्द्रसे कहा कि चलरे ब्राह्मण, तू अपने गुरुके पास चल, ariपर तेरे कहनेका निश्चय किया जायगा। इसप्रकार कहकर वे दोनों ही विद्वान सब लोगोंको साथ लेकर चल दिये शक्रवचः श्रुत्वा विखिन्नो भूय गौतमः । चित्त विचारयामास का - व्यार्थं कथयामि किम् ॥९१॥ द्विजस्य गुरुणा सार्द्धं वादं करोम्यनेन किम् । इति चिंत्य जगौ शक्रं गर्व कोऽपि हि मुंचति ॥ ९२ ॥ मच्छ वो गुरुसान्निध्यं तव कृत्वेति निश्चयम् । जग्मतुस्तौ सुविधेशौ
धर्मके दो भेद कौनसा है, कर्म