________________
- ११४] गौतमचरित्र। रहे हैं और इसप्रकार अपना और दूसरोंका उपकार करने में लग रहे हैं इसलिये वे इस समय मुझे कुछ बतला नहीं रहे हैं । ८० ॥ इसी कारण इस काव्यका अर्थ समझनेके लिये मैं आपके पास आया हूं इसलिये आप मेरा उपकार करनेके लिये इस काव्यका यथार्थ अर्थ कहिये ॥ ८१ ॥ इस प्रकार उस बूढेकी बात सुनकर पांचसौ शिष्य और दोनों भाइयोंके द्वारा प्रेरणा किया हुआ गौतम शुभ बचन कहने लगा ।। ८२ ॥ 'कि हे वृद्ध ! क्या तू नहीं जानता है कि इस पृथ्वीपर समस्त शास्त्रोंके अर्थ करनेमें पारङ्गत और अनेक शिष्योंका प्रतिपालन करनेवाला मैं प्रसिद्ध हूँ। मैं तुम्हारे काव्यके अर्थको अवश्य बतलाऊंगा परन्तु तुम अपने काव्यका बड़ा अभिमान करते हो बताओ तो सही कि यदि मैं उस काव्यका अर्थ बतला दूंगा तो तुम मुझे क्या दोगे?॥८३-८४॥ इसके उत्तरमें उस बूढ़े इन्द्रने कहा कि हे ब्राह्मण ! यदि आप मेरे काव्यका अर्थ बतला देंगे तो मैं सब लोगोंके सामने आपका शिष्य हो जाऊंगा ।। ८५ ॥ यदि उस काव्यका अर्थ तेनाहं च समायातः सत्काव्याथ तवांतिके । अतस्त्वं हि याथार्थ्य मदुपकारहेतवे ॥ ८१ ॥ वृद्धवाचं समाकर्ण्य गौतमो बचनं नगौ । पंचशतकशिष्येण भ्रातृभ्यां प्रेरितः शुभम्॥८२॥रे वृद्ध ! त्वं न जानासि विश्रुतोऽस्मिन् महीतले । विश्वशास्त्रार्थपारीणः शिष्याणां प्रतिपालकः ॥८३॥ अहो चेतव काव्याथ तुभ्यं ब्रवीमि निश्चितम् । अहंकारिन् तदा मद्यं किमु वस्तु ददासि हि ॥ ८४ ॥ तेनोक्तं यदि भो विष ! काव्या कथयस्यहो । पुरतो विश्वलोकानां तब शिप्यो भवाम्यहम्