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गौतमचरित्र। किसी कारणके संसारको अनिस समझकर वे बुद्धिमान् भगवान् कर्मोको शांत करनेके लिये विषयोंसे विरक्त हुए ॥ ४७ ॥ जिनका हृदय मोक्षमें लग रहा है ऐसे वे भगवान् अपने निर्मल अवधिज्ञानसे अपने पहले भवोंको जानकर अपने आप प्रतिबोधको प्राप्त हुए अर्थात उन्हें आत्मज्ञान अपने आप हुआ ॥ ४८ ॥ उसी समय लौकांतिक देव आए, उन्होंने आकर भगवानको नमस्कार किया और कहा कि "हे प्रभो! तपश्चरणके द्वारा कर्मोको नाशकर आप शीघ्र ही केवलज्ञानको प्राप्त कीजिये " इसप्रकार निवेदन कर वे लौकांतिक देव अपने स्थानको चले गये ॥ ४९ ॥ भगवानने सब भाई बन्धुओंसे पूछा फिर वे मनोहर पालकीमें सवार हुए। उस पालकीको उठाकर आकाशमार्गके द्वारा इन्द्र ले चले । इस प्रकार वे भगवान नागखण्ड नामके बनमें पहुंचे। वहांपर इन्द्रोंने उन्हें पालकीसे उतारा और एक स्फटिक शिलापर वे भगवान उत्तर दिशाकी ओर मुंह करके विराजमान होगये ॥ ५०-५१ ॥ महाबुद्धिमान उन भगवानने मार्गशीर्ष कृष्णा भूद्विषयेभ्यो जिनः सुधीः। प्रशमाय बहिहेतुं ज्ञातनश्वरसंसृतिः ॥ ४७ ॥ विमलावधिना ज्ञात्वा नाथः पूर्वभवान्निजान् । प्रतिबोधः स्वयं चाभूनिर्वाणदत्तचित्तकः ॥ ४८ ॥ लौकांतिकाः समागत्य नम्येत्युक्त्वा बचो जिन । तपसा कर्म निर्मूल्य केवलं नय संययुः ॥४९॥ बंधुवर्ग समाप्टच्छ्य शिविकामभिरुह्य च । नमसीधृतां कांतां स भगवान् बनं ययौ ॥५०॥ संप्राप्य नागखंडं स निषीदत्स्फटिकोपले। कृत्वोत्तरमुख यानात्सुरेंद्रैरवतारितः ॥ ११ ॥ मार्गशीर्षासिते पक्षे