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चौथा अधिकार।
[१०३ होगा और अग्निके देखनेसे कर्मोका नाश करनेवाला होगा ॥ १८-२० ॥ अपने पतिके मुखसे उन स्वमोंका इसप्रकार फल सुनकर वह महारानी बहुत ही प्रसन्न हुई और भगवान जिनेंद्रदेवके अवतारकी सूचना पाकर वह अपने जन्मको सफल मानने लगी ॥२१॥ उसी स्वप्नके देखनेके दिन अर्थात् आषाढ शुक्ला षष्ठीके दिन प्राणत स्वर्गके पुष्पोत्तर विमानसे चलकर इंद्रके जीवने त्रिशलाके मुखमें प्रवेश किया ॥२२॥ उसीसमय इंद्रादि देवोंके सिंहासन कंपायमान हुए और अवधिज्ञानसे जानकर वे सब देव आए तथा वस्त्राभरणोंसे माताकी पूजाकर अपने अपने स्थानको चले गये ॥२३॥ चैत्र शुक्ला त्रयोदशीके दिन जब कि ग्रह सब उच्च स्थानमें थे और लग्न शुभ था उससमय महारानी त्रिशलादेवीने भगवान महावीरस्वामीको जन्म दिया ॥२४॥ उस समय सब दिशाएं निर्मल होगई, सुगधित वायु वहने लगी, आकाशसे पुष्पोंकी वर्षा होने लगी और दुंदुभी बाजे बजने लगे ॥२५॥ भगवान महावीरस्वामीके जन्म लेते ही उनके वह्निना ॥ २० ॥ स्वप्नावलीफलं श्रुत्वा प्रियास्यात्सा च पिप्रिये । स्वजन्म सफलं मेने निनावतारसूचनात् ॥२१॥ पुष्पोत्तरात्समुत्तीर्य सुरेशस्त्रिशलामुखम् । स्वप्ने निशि शुचौ शुक्लपक्षे षष्ठयां विवेश च ॥२२॥ तस्मिन् क्षणे सुरेंद्राद्याः स्वसिंहासनकंपनातू । ज्ञात्वैत्य भूषणायैस्तां संपूज्य स्वगृहं ययौ ॥२३॥ चैत्रे सितत्रयोदश्यां राज्ञी जिनमसूत सा । स्वोच्चग”हे दृष्टे शुभलग्ने गते सति ॥ २४ ॥ सर्वाः प्रसेदुराशाश्च ववुः सुगंधिमारुताः । पपात पुष्पवृष्टि नेदुर्दु