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गौतमचरित्र। तीर्थकर नामके महापुण्यके उदयसे सब इंद्रोंके सिंहासन एक साथ कंपायमान होगये ॥२६॥ अवधिज्ञानके द्वारा उन सबने भगवान महावीरस्वामीका जन्म जान लिया और उसीसमय सबइंद्र, और चारों प्रकारके देव अपने अपने गाजोंबाजोंके साथ कुंडपुरमें आये ॥२७॥ राजमहलमें आकर इंद्रादिक सब देवोंने माताके सामने विराजमान भगवानको देखा और भक्तिपूर्वक उनको नमस्कार किया ॥२८॥ इंद्राणीने माताके सामने तो मायामयी बालक रख दिया और उस बालकको गोदीमें लेकर अभिषेक करनेके लिये सौधर्म इंद्रको सोंप दिया ॥२९॥ सौधर्म इंद्रने भी बालक भगवानको एरावत हाथीके कंधेपर विराजमान किया और आकाशमानके द्वारा अनेक चैयालयोंसे मुशोभित मेरुपर्वतपर गमन किया ॥३०॥ उससमय देव सब वाजे बजाने लगे, किन्नर जातिके देव गीत गाने लगे और देवांगनाओंने भंगार, दर्पण, ताल (पंखा) आदि मंगल द्रव्य धारण किये ॥ ३१ ॥ मेरु पर्वतपर पांडुक दुभयस्तदा ॥२९॥ तस्मिन् जिनपतौ जाते समं सिंहासनानि वै । कपं ययुः सुरेंद्राणां तीर्थंकरसुपुण्यतः ॥२६॥ कुंडपुरं ययुः शक्राश्चतुर्विधाः सुरास्तथा। स्वस्ववादित्रनादेन ज्ञात्वा चावधिलोचनैः॥२७॥ राजकुलं समासाद्य मातुः पुरः स्थितं जिनम् । तदा ददृशुरिंद्राद्याः भक्त्या प्रणतमौलयः ॥२८॥ शची मायाकं मातुः पुरो निधाय वेगतः । बालं हृत्वाभिषेकाय सौधर्मेद्राय संददे ॥ २९ ॥ तदा चैरावतस्कंधे शको निधाय तं जिनम् । निन्ये नभोध्वना मेरुं चैत्यालयैः प्रशोभितम् ॥३०॥ सुरास्तूर्यव्रनं नेदुर्नगुर्गीतानि किन्नराः । भुंगाराद