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गौतमचरित्र |
हो, जो बहुत शुद्ध सोनेका बना हुआ हो और उसमें बहुमूल्य रत्न जड़े हुए हों ॥ ३८ ॥ भगवान अरहंतदेव के कहे हुए शुभ शास्त्र लिखाकर समर्पण करने चाहिये जिन्हे पढ़कर लोग कुबुद्धिसे अंधे और बहरे न हो जाय ||३९|| जो मुनिराज सम्यग्दर्शन, सम्यग्झान और सम्यक् चारित्रसे पवित्र हैं, जिन्हें शत्रु मित्र सब समान हैं ऐसे उत्तम पात्रोंको आहारदान देना चाहिये ||४०|| जो देशव्रतको धारण करनेवाले हैं वे मध्यमपात्र कहलाते हैं और जो असंयत सम्यग्दृष्टी हैं वे जघन्यपात्र कहलाते हैं । इनको भोजन कराना चाहिये और पाप दूर करनेके लिये इन्हें दान देना चाहिये जिससे कि भोगभूमिकी संपत्ति सुलभ हो जाय अर्थात् शीघ्र ही प्राप्त हो जाय ॥४१ - ४२ || जिसप्रकार ईखके खेत में दिया हुआ पानी मीठा होजाता है उसी प्रकार पात्रके लिये दिया हुआ अन्नपानी भी अमृतसे भी बढ़कर हो जाता है ||४३|| जो मिथ्यादृष्टी हैं, मिथ्याज्ञान और मिथ्या चारित्रको धारण मौल्य सद्रत्नसुतपनीय मंडितम् ||३८|| लेखनीयं शुभं शास्त्र जिननाथमुखोद्भवम् । कुमतिमूकतांधत्वं येन संजायते न हि ॥ ३९ ॥ सम्यक्त्वदर्शनज्ञानचारित्रेण पवित्रिताः । ये तदुत्कृष्टपात्रा वै ज्ञेयाः 1 समारिमित्रकाः ॥ ४० ॥ देशव्रतधरा ये ते मध्यमपात्रका ः मताः । असंयतः सम्यग्दृष्टिः भवेज्जवन्यपात्रकः ||४१ || भोज्यं त्रिविधपा
यो दीयते पापहानये । भोगभूमिसु संपत्तिः सुलभा येन जायते ॥ ४२ ॥ इक्षुक्षेत्रे पयो क्षिप्तं यथा मिष्टं प्रजायते । अन्नपानं तथा दत्तं पात्रे ऽमृततरं भवेत् ॥ ४३ ॥ वर्जिताः स्थूलहिंसादेर्मिथ्यादृग्ज्ञान