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तीसरा अधिकार ।
[ ६५ उस स्थंडिला ब्राह्मणीने समस्त मनोहर अंगोंको धारण करनेवाले पुत्रको उत्पन्न किया ॥ ८९ ॥ उस समय सब दिशाएं निर्मल होगई थीं, वायु सुगंधित वहने लगी थी और आकाशमें जय जयके शुभ शब्द हो रहे थे ||२०|| उससमय समस्त स्त्री पुरुषोंके हृदयमें आनंद उत्पन्न करनेवाले चारों प्रकारके मनोहर बाजे बज रहे थे ||११|| जिसप्रकार जयंतसे इंद्र इंद्राणी प्रसन्न होते हैं, अथवा जिस प्रकार स्वामिकार्ति - केयसे महादेव पार्वती प्रसन्न होते हैं उसीप्रकार वे ब्राह्मण ब्राह्मणी उस पुत्रसे प्रसन्न हुए थे ||२२|| उस समय उस शांडिल्य ब्राह्मणने मागनेवालोंको मणि, सोना, चांदी, वस्त्र, आभरण आदि इच्छानुसार दान दिया था ॥ ९३ ॥ उससमय बहुमूल्य वस्त्र, आभूषण तथा तिलकसे शोभायमान होनेवाली स्त्रियां बड़ी प्रसन्नताके साथ शुभ गीत गा रही थीं ॥९४॥ जिसकार निर्धन मनुष्य खजानेको पाकर प्रसन्न होता है तनयं रामा निखिलां गमनोहरम् ॥ ८९ ॥ तदा दिशोऽमला जाता : चवुः सगंधवायवः । दिवि वाणी शुभ चाभूज्जयजयारवान्विता ॥ ९० ॥ तदा चतुर्विध वाद्यं ध्वनतिस्म शुभस्वरम् । विश्वनरादिचित्तेषु प्रमो दभरदायकम् ॥९१॥ जयंतेन शचीशक्रौ स्कंदेनोमामृडौ यथा । तथा तौ दंपती तेन तनयेन ननंदतुः ॥ ९२ ॥ शांडिल्योप्यर्थिने वित्तं ददौ मानसवांच्छितम् । मणिसुवर्णरूप्यादिवसनाभरणादिकम् ||९३॥ कामिन्यः शुभगीतानि गीयतेस्म मुदा युताः । प्रभूतमौल्यसहस्त्रभूषण तिलकान्विताः ॥ ९४ ॥ पिता पुत्रमुखं वीक्ष्य स्वस्यांगे न ममौ मुदा । निस्वो निघानमाप्येव वार्धिः पूर्ण विधुं यथा ॥ ९५ ॥