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गौतमचरित्र ।
चंचल इंद्रियरूपी हिरणोंको बांधनेवाली है और संसाररूपी समुद्र से पार कर देनेके लिये जहाज के समान है इसलिये भव्य जीवोंको इन व्रतोंके दिनोंमें जिनधर्मकी प्रभावना अवश्य करनी चाहिये ||२७|| भव्य जीवोंको इस विधिके अनुसार यह लब्धिविधान व्रत तीन दिनतक बराबर करते रहना चाहिये क्योंकि यह व्रत समस्त कर्मोंका नाश करनेवाला है और इच्छानुसार फल देनेवाला है || २८ ॥ चतुर पुरुषों को इस प्रकार यह व्रत तीन वर्षतक बराबर करते रहना चाहिये और तीन वर्ष पूर्ण होजानेपर इसकी उद्यापन क्रिया करनी चाहिये ||२९| उस उद्यापन क्रियाके लिये एक जिनालय बनवाना चाहिये जो अनेक प्रकारकी शोभासे सुशोभित हो, पापरूपी शत्रुओं के नाश करनेमें चतुर हो और पुण्यराशिका कारण हो ||३०|| उस जिनालय में निर्मल हृदय से श्रीवर्द्धमानस्वामीकी मनोहर प्रतिमा विराजमान करनी चाहिये जो आपत्तिरूपी लताओंको नाश करनेवाली हो ||३१|| तदनंतर बड़ी भक्तिके साथ विधिपूर्वक, शुद्ध मन वचन कायसे मनुष्यों को आनंद महानौका जिनधर्मप्रभावना । भव्यलोकैः सदा कार्या चलाक्षमृगबंधिनी ||२७|| विधिनानेन वै कार्यमिदं भव्यैर्दिनत्रयम् । निःशेषकर्म संहर्तृवांच्छितार्थप्रदायकम् ॥ २८ ॥ वर्षत्रितयपर्यंतं व्रतं कार्यं विचक्षणैः । ततः पूर्णे समाजाते कर्तव्योद्यापन क्रिया ॥ २९ ॥ जिनचैत्यालयं कार्यमनेकशोभयान्वितम् । पापारिध्वंसने दक्षं पुण्यराशिनिबंधनम् ॥ ३० ॥ ततः श्रीवर्द्धमानस्य प्रतिमा सुमनोहरा । विधेयामल चित्तेन व्यापडताप्रणाशिका ॥ ३१ ॥ विधेयं शांतिकं रम्यं जनानंदप्रदायकम् ।