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तीसरा अधिकार।
[८३ ॥२०॥ शुद्ध लवंगपुष्पोंके द्वारा एकसौ आठवार अपराजित मंत्रका जप करना चाहिये और श्री वर्द्धमानस्वामीकी सेवा करनी चाहिये ॥२१॥ जैन शास्त्रों में महावीर, महाधीर, सन्मति, वर्द्धमान और वीर ये पांच श्री वर्द्धमानस्वामीके नाम कहे गये हैं ॥ २२ ॥ भक्तिपूर्वक इन सब नामोंका उच्चारण कर और तीन प्रदक्षिणा देकर भगवान महावीरस्वामीके लिये विद्वानोंको महा अर्घ देना चाहिये ॥२३॥ व्रत पालन करनेवाले भव्य जीवोंको उन दिनों जिन भव्य जीवोंने यह व्रत धारण किया था जिन्होंने इसका निरूपण किया था और जिन्होंने यह व्रत पालन कराया था उनकी कथाएं बांचनी चाहिये ॥२४॥ उन दिनों चित्तको स्थिर कर भगवान अरहंतदेवका ध्यान करना चाहिये क्योंकि भगवान अरहंतदेवका ध्यान करनेसे ही त्रेसठ शलाकाओंके पद प्राप्त होते हैं ॥२५॥ इन दिनों विद्वानोंको रात्रिमें पृथ्वीपर ही शयन करना चाहिये और सदा तीर्थकर आदि महापुरुषों की स्तुति करते रहना चाहिये ॥२६॥ जिनधर्मकी प्रभावना करना त्तरं शतम् । शुद्धलवंगपुष्पाणां प्रसेव्यो वईमानकः ॥२१॥ महावीरो महाधीरः सन्मतिर्वईमानकः । वीरश्च पंच नामानि कथितानि निन, गमे ॥२२॥ इमानि वे समुच्चार्य भूयिष्ठभक्तितो द्रुतम् । त्रिसप्रदक्षिणीकृत्य महार्घः क्रियते बुधैः ॥ २३ ॥ येनेदं सुव्रतं चक्रे प्रकथितं च कारितम् । सर्वदा तत्कथाख्यानं श्रोतव्यं व्रतधारिभिः ॥२४॥ एकाग्रेण सुचित्तेन ध्येयं श्रीजिननामकम् । त्रिषष्टिपुरुषादीनां पदं येनाप्यते द्रुतम् ॥२५॥ निशायां एथिवीशय्या प्रकर्तव्या बुधोत्तमैः। तीर्थकरादिमानां गीतं वा गीयतेऽनिशम् ॥२६॥भवार्णव