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दूसरा अधिकार |
[ उदयसे उस देशमें दुष्काल पड़ा ॥ २८९ ॥ इसीलिये भूख प्याससे दुःखी हुई, असन्त दुर्बल और दुराचार करनेमें तत्पर ऐसी वे तीनों कन्याएं विदेशके लिये निकलीं ॥ २९० ॥ वे मार्ग में सदा परस्पर लडती हुई चलतीं थीं, साथमें न तो उनके पास कुछ खानेको था और न उन्हें लज्जा अभिमान था ।। २५१ ।। पापकर्म जब अपना फल देने लगता है तब सुख, सुंदरता, घर, धान्य, भोजन आदि सब नष्ट हो जाते हैं ||२९२ || ये तीनों कन्याएं अनेक नगरोंमें भ्रमण करती हुई और लोगों से मांगती खाती हुई अनुक्रमसे इस पुष्पपुर नगरमें आपहुंची है ||२९३ || इस बनमें मुनि और बहुतसे लोगोंको देखकर धन मांगनेके लिये यहां आई हैं ||२९४ || यद्यपि इनका शरीर मलिन है तथापि इन्होंने प्रसन्नचित्त हो मुनिके पास आकर नमस्कार किया है || २९५ || हे राजन ! त्सिताः । तदा हि दुर्भिक्ष जातं पूर्वपापविपाकतः ॥ २८९ ॥ तदा तिस्रोपि संलेपुर्विदेशं क्षीणविग्रहाः । क्षुत्पिपासासमाक्रांता दुराचारेषु तत्पराः ||२९०॥ कलहं पथि कुर्वत्यस्तागच्छंति निरंतरम् | पाथेयलवसंहीना लज्जामानपरिच्युताः ॥ २९९ ॥ विपाकाभिमुखं पापं यदा जंतोः प्रजायते । तदा सुखं स्वरूपं च गेहं धान्यं न भोजनम् ॥ २९२ ॥ कन्याः तिस्रः परिभ्रम्य नगरपुरपत्तनम् । क्रमात्पुष्पपुरं प्रापुर्याचयत्यो जनं जनम् ॥ २९३ ॥ अथारण्ये समालोक्य मुनिमानवसंचयम् । इमाः समागताः राजन् वसुयाचनहेतवे ॥ २९४ ॥ मुनेरंतिकमागत्य नमस्कृत्य परायणाः । बभूवुस्ता मलालिप्ता विकचाननमानसाः ॥२९९॥ अनाद्यतेऽत्र संसारे जननमृत्युसंकुले । कस्मिन्