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गौतमचरित्र । धिसे यह पापरूपी विष नष्ट होता है उसे आज शीघ्र ही हम लोगोंको बतलाइये ॥ ५ ।। तदनंतर वे मुनिराज उन कन्या
ओंके शुभ बचन सुनकर और उन्हें निकट भव्य समझकर मीठी वाणीसे कहने लगे ॥६॥ कि हे पुत्रियो ! तुम लब्धिविधान व्रत करो, यह व्रत ही कर्मरूपी शत्रुओंको नाश करनेवाला है और संसाररूपी समुद्रसे पार कर देनेवाला है ॥ ७ ॥ इस लब्धिविधान व्रतके पालन करनेसे सब भवोंमें उत्पन्न हुए पाप क्षणभरमें नष्ट हो जाते हैं और मोक्षके अनुषम सुख प्राप्त होते हैं फिर भला इंद्र चक्रवर्ती आदिकी विभूतिकी तो बात ही क्या है ॥८॥मुनिराजके ये वचन सुनकर वे कन्याएं कहने लगी कि हे स्वामिन् ! यह व्रत किसप्रकार किया जाता है, और इसका सुनिश्चित फल पहले किस भव्यने प्राप्त किया है ? ॥९॥ इसके उत्तरमें वे मुनिराज कहने लगे कि हे पुत्रियों ! इस व्रतकी विधि सुनो। उसके सुनने मात्रसे मनुष्योंको उत्तम सुख प्राप्त होता है ॥ १०॥ मोक्ष प्राप्त करनेकी इच्छा करनेवाले भव्य जीवोंको यह व्रत भादों और व्रतौषधेन वै । अघ तद्रुतमस्माकं कथय भो मुनीश्वर ! ॥५॥ अथ महामुनींद्रोऽसौ जगाद मधुरां गिरम् । तासां शुभं बचः श्रुत्वा ज्ञात्वा चासन्नभव्यताम् ॥ ६ ॥ बालाः कुरुत भो पुत्र्यश्चारु लब्धि. विधानकम् । कर्मारिनाशने दक्षं भवसमुद्रतारणम् ॥७॥ विश्वभवार्जित पापं नश्यते येन तत्क्षणे । प्राप्यते मुक्तिसत्सौख्यं शक्रादीनां तु का कथा ॥ ८॥ इत्याकर्ण्य पुनः प्रोचुः स्वामिन् ! तत्क्रियते कथम् । अस्य फलं पुरा प्राप्तं केन भव्येन निश्चितम् ॥९॥ ततोऽब्रवीत्म