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गौतमचरित्र। यह संसार अनादि अनंत है, इसमें यह जीव सदा जन्म मरण किया करता है । इसमें भ्रमण करते हुए जीव कर्मोंके उदयसे न जान किस भवमें मिल जाते हैं ॥ २९६॥ हे राजन् ! इस संसारमै पापी जोव चारों गतियोंमें अनेक प्रकारके दुःख भोगते रहते हैं और पुण्यकर्मके उदयसे स्वर्गमोक्षके सदा रहनेवाले सुख भोगते हैं ॥ २९७ ॥ जिसमकार बादलकी गर्जना सुनकर मोर प्रसन्न होते हैं उसीप्रकार मुनिराजके मुखसे अपने भवांतर सुनकर वे तीनों कन्याएं प्रसन्न हुई ॥२९८ हे राजन् ! यह श्रेष्ठ धर्म एक कल्पवृक्षके समान है। सम्यग्दर्शन ही इसकी मोटी जड़ है, भगवान जिनेन्द्रदेवके वचन ही इसकी मोटी पींड है, श्रेष्ठ दान ही इसकी शाखाएं हैं, अहिंसादिक व्रत ही पत्ते हैं, क्षमादिक गुण ही कोंपल वा नये पत्ते हैं, इन्द्र चक्रवर्ती आदिकी विभूति ही इसके पुष्प हैं, श्रद्धारूपी बादलोंके समूहसे ही यह सींचा जाता है और भवांतरे जीवा मिति कर्मयोगतः ॥२९६॥ चतुर्गतिभवं दुःख लभते किल्विषानराः । सौख्यं सुकृतपाकाद्धि नित्यं स्वर्गापवर्गयोः॥२९॥ ताः स्वभवांतरं श्रुत्वा मुनिरानमुखात्तदा । जहर्षुः हृदये गाढं केकिन्यो वा घनारवम् ॥२९८॥ सम्यक्त्वस्थूलमूलो मिनवरबचनस्कंधबंधःसुदान, शाखोऽहिंसादिपत्रः सुगुणकिसलयः शक्रचक्रयाप्तिपुष्पः । रुच्यभोवृन्दसेको मुनिवरनिचयद्विजराजप्रसेव्यः, स श्रेयः कल्पशाखी प्रभवतु भवतां मुक्तये भूप ! नित्यम् ॥२९९॥ इतिश्रीमंडलाचार्यश्रीधर्मचंद्रविरचिते श्रीगौतमस्वामिचरिते
कुटविकन्याभवांतरवर्णनं नाम द्वितीयोऽधिकारः ।