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तीसरा अधिकार ।
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अनेक मुनियोंका समुदायरूपी पक्षीगण ही इसकी सेवा करते हैं। ऐसा यह धर्मरूपी कल्पवृक्ष तुझे सदा मोक्षसुख देनेवाला हो । इसप्रकार मंडलाचार्य श्रीधर्मचंद्र विरचित श्रीगौतमस्वामीचरित्रमें कुटंम्बी कन्याओंके पूर्वभव वर्णन करनेवाला यह दूसरा अध्याय समाप्त हुआ ।
अथ तीसरा अधिकार |
तदनन्तर संसारसे दुःखोंसे भयभीत हुई वे तीनों ही कन्याएं उन मुनिराजको आनंदके साथ नमस्कार कर तथा उनकी स्तुति कर उनसे प्रार्थना करने लगीं ॥ १ ॥ वे कहने लगीं कि हे प्रभो ! हे मुनिराज ! मुनिराजके उपसर्गसे हम मातापिता से रहित हुई और भव भवमें हमने दुःख पाया ॥२॥ हे मुनिराज ! हे स्वामिन ! इस संसाररूपी अपार समुद्र में डूबते हुए समस्त दुःखी प्राणियोंको पार कर देनेके लिये आप जहाजके समान हैं || ३ || हे संसारी जीवोंके परम मित्र ! पहिले भवमें हमने जो महा पाप किया है अब उसके नाश करनेका उपाय बतलाइये || ४ || हे मुनिराज ! जिस व्रतरूपी औष
अथ कुटंबिनां कन्याः प्रोचुरिति मुनीश्वरम् । स्तुत्वा नत्वा च सानंद संसृतिभयकंपिताः ॥ १ ॥ महायोगिन् ! वयं जाता दुःखिन्यो हि भवे भवे । मुनींद्रस्योपसर्गेण मातृपित्रादिवर्जिताः ॥ २ ॥ संसारापारपाथोधिमज्जतां विश्वदेहिनाम् । दुःखिनां तारणायापि पोतायसे मुने ! प्रभो ! || ३ || पूर्वभवांतरेऽस्माभिर्यदधं समुपार्जितम् । उपाय तस्य नाशाय कुरु परममित्र ! भो || ४ || पापविषानि नश्यति येन