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दूसरा अधिकार ।
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क्या है || २७७ || विद्वान् लोगों को अरहंत देव, उनके कहे हुए शास्त्र और निग्रंथ गुरुकी कभी निंदा नहीं करनी चाहिये क्योंकि इनकी निंदा करनेवाले मनुष्य नरकमे जाते हैं और स्तुति करनेवाले स्वर्गने जाते हैं || २७८ ॥ तदनंतर हे राजन् ! आयु पूर्ण होनेपर वे तीनों मुर्गियां बड़े कष्टसे मरीं सो ठीक ही है - पूर्व पापकर्मो के उदयसे जीवोंको प्रत्येक भवमें दुःख होता है || २७९ ॥ वे तीनों ही मरकर धर्मस्थानोंसे सुशोभित ऐसे अवंती देशके समीप नीच लोगोंसे बसे हुए किसी ग्राम में कुटंबीके घर पाएं उत्पन्न हुई । उस कुटंबी के घर पिता, जवाई, और पुत्र थे तथा वे सब मुर्गियां पाला करते थे । २८०-२८१ ।। उन कन्याओंके गर्भ में आते ही धन सब नष्ट हो गया था, जन्म होते ही माताएं सब मर गई थीं और कुटंबके सब लोग मर गये थे, केवल पिता रह गया था वही उन्हें पालता था ।। २८२ ।। उन कन्याओं में से एक कानी थी, एक लंगड़ी थी और एक काले रंगकी कार्या न पंडितैः । अधोगा निंदकात्मानो ब्रजेत्यूर्ध्वमनिंदकाः ॥ २७८ ॥ अथ ते कुर्कुटाः भूप ! कष्टादायुः क्षये मृताः । पूर्वपापविपाकेन दुःखिनो हि भवे भवे ॥ २७९ ॥ अवंती नाम सदेशो स्थानविजितः । समीपे तस्य घोषोऽरित नीचजनसमावृतः ॥ २८० ॥ तत्र त्रयः समाजाताः कन्याः कुटंबिनां गृहे । पितृजामातृपुत्राणां कुर्कुटवृंदपालिनाम् || २८१ ॥ तासां गर्भे गतं द्रव्यं मृता जन्मनि मातरः । कुटंबिनां क्षयो जातो वर्द्धते सह पितृभिः ॥ २८२ ॥ एका काणा पूरा खंजा श्यामवर्णा तृतीयका । मुन्युपसर्गजाघेन जावास्सा दुःख