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दूसरा अधिकार। स्त्रियोंकी प्राप्ति ही है। क्योंकि स्त्रिया पांचों इंद्रियोंको मुख देनेवाली हैं। जिन्हें स्त्रियोंका भोग प्राप्त नहीं होता उनका जन्म ही व्यर्थ समझना चाहिये ॥२२६ ॥ संसारका उत्तम फल द्रव्य है जो अनेक प्रकारके भोगोपभोगोंको देनेवाला है, इसी भोगोपभोगसे प्राणियोंको परलोकमें भी ऐसा ही वैभव प्राप्त होता है ॥ २२७ ॥ इस बातको तू सच समझ कि यदि तू इस समय हमारी इच्छाको पूर्ण न करेगा तो हम तेरे इस शरीरको चण्डीके मुखमें रख देंगे ॥ २२८ ॥ इसप्रकार कहकर और फिर भी उनको निर्विकार देखकर उन तीनों स्त्रियोंने मुनिराजको हाथसे उठाया और चण्डीके सामने लाकर रख दिया ॥२२९॥ तदनन्तर उन्होंने उन मुनिराजपर घोर उपसर्ग किया। पत्थर, लकड़ी, मुक्का, लात, जूता आदिसे ताड़न किया और उन्हें बांध भी लिया ॥२३॥ उस समय वे मुनिराज अपने हृदयमें बारह अनुप्रेक्षाओंका चितवन फलम् । चक्रिदेवेंद्रनागेंद्रनं त्याज्या भोग्यसंपदा ॥२२५॥ संसारस्य फलं योषित पंचाक्षसुखदायिका । स्त्रीभोगरहिता येऽत्र तेषां जन्म निरर्थकम् ॥ २२६ ॥ संसृतेः सत्फलं द्रव्यं भोगोपभोगदायकम् । तेन सुप्राणिनः योप्पल्लभतेऽमुत्र वैभवम् ॥२२७॥ वांच्छितं यदि नः सत्यं न करिष्यस संप्रति । ततो वयं प्रदास्यामस्त्वद्वपुश्चडिकामुखे ॥२२८॥ इत्युक्त्वा निर्विकारं तं ज्ञात्वा चोत्थाय पाणिभिः । ताः सर्वाः स्थापयामासुश्चडिकापुरतस्तदा ॥२२९॥ उपसर्ग मुनौ चक्रुः पाषाणैयष्टिभिस्तथा । मुष्टिमिबंधनैः पादेस्ताडनैः पादरक्षकः ॥२३०॥ अचिंतयन्मुनिश्चित्तेऽनुप्रेक्षा द्वादशात्मिकाः । प्राणिनां तरणे नावो