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गौतमचरित्र। कहने लगा कि हे कांते ! हे रानी ! आज न उठनेका क्या कारण है, मेरे सामने कह ॥ १६४ ॥ तदनन्तर उस राजाने उस पलङ्गपर बैठकर उसका स्पर्श किया तथापि उस अचेतन विशालाक्षीने कुछ भी उत्तर नहीं दिया ॥ १६५ ॥ तब राजाने अपने मनमें समझा कि दोनों दासियोंसे रहित यह मायामयी रानी है इसलिये स्त्रियां जिसप्रकार विनय करती हैं उससे रहित हैं और पंचेन्द्रियोंके विषयोंसे रहित हैं। रतिके समान रूपको धारण करनेवाली वह रानी तो किसी पापीने हरण कर ली है। यही समझकर वह राजा बेहोश होकर भूमिपर गिर पड़ा ॥ १६६-१६७ ॥ कस्तूरी, चन्दन आदि शीतोपचारोंसे सेवकोंने उसे सावधान किया, फिर जिसका चित्त हरा गया है ऐसा वह राजा उस रानीके लिये विलाप करने लगा। वह कहने लगा कि हे हंसकीसी चाल चलनेवाली ! हे सुन्दरी ! हे हिरणकेसे नेत्रवाली ! हे वाले ! तू कहां है, जल्दी कह ॥६८-१६९॥ हे गुणोंकी गौरवताको तां प्रति । राज्ञि! किं कारणं कांते ! ममाग्रे त्वं निरूपय ॥१६॥ ततस्तच्छयने स्थित्वा तेन तत्स्पर्शनं कृतम् । तथापि किमु नो ब्रूते विशालाक्षी विचेतना ॥१६५॥ राज्ञी मायामयी जाता दासीढयेनवनिता । योषिद्विनयसंहीना पंचाक्षविषयच्युता ॥१६६॥ततो मनसि संज्ञात्वा राज्ञीयं केन पापिना । हृतेति रतिरूपाढ्या भूमौ पपात भूपतिः ॥१६७॥ कस्तूरी घनसारादिशीतोपचारतस्तदा। प्रबोधं सेवकैर्नीतो भूपतिर्हतमानसः ॥१६८॥ विलापमिति चक्रेऽसौ हा ! मरालगते ! -वरे!। हा! मृगलोचने वाले कुत्रासि त्वं वद द्रुतम् ॥१६९॥ हा गुण