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गौतमचरित्र। वियोगसे दुःखी होकर वह राजा मर गया सो ठीक ही है क्योंकि स्त्रीके वियोगरूपी विषकी बाधा किसको नहीं मार डालती है ? भावार्थ-सबको मार डालती है ॥१८॥राजाके मर जानेपर सब मंत्रियोंने मिलकर समस्त ऐश्वर्योसे भरपूर वह राज्य, अनेक राजा जिसकी सेवा करते हैं ऐसे उसके पुत्रके लिये दे दिया ॥ १८६॥ उस राजाके जीवने इस अनादि अनन्त संसारमें अनेकवार जन्म मरण किया और फिर किसी एक वार बहुत ऊँचा हाथी हुआ ॥ १८७॥ उस हाथीके नेत्र क्रोधसे लाल होरहे थे, वह बड़ा ही तेजस्वी था
और बड़ा ही मदोन्मत्त था। वह बनमें सब स्त्री पुरुषोंको मार गिराता था ॥ १८८ ॥ महा शरीरको धारण करनेवाले उस हाथीने उस भवमें बड़ा भारी पाप उपार्जन किया । क्योंकि प्राणियोंका घात करना भव भवमें महादुःख देता है ।। २.८९ ॥ उस हाथीके किसी पुण्यकर्मके उदयसे उस वनमें एक मुनिराज पधारे। वे मुनिराज अवधिज्ञानी थे
और भव्य जीवोंके लिये अच्छे धर्मोपदेशक थे ॥ १९०॥ भवेन्न मृत्युदा ॥१८॥ तदा पुत्राय सदत्तं राज्यं संमिल्य मंत्रिभिः। विश्वसमृद्धिसंपन्नं समस्तभूपसेविने ॥१८६॥ अथानाद्यतसंसारे मृतो जातः पुनः पुनः । आसाद्य भवमेकं त्वं दंती चासीन्महोच्छ्रितः ॥१८७॥ स बने ताडयामास नरसीमंतिनीगणान् । मदोडतो महातेजाः कोपारुणितलोचनः ॥१८८॥ तद्भवे स महत्पापमुपार्जयन्महातनुः। घातो हि प्राणिनां गाढं प्रदुःखदो भवे भवे ॥ १८९ ॥ केनचित्पुण्ययोगेन मुनिरेकः समागतः। अवधिज्ञानचच्चक्षुर्भव्यजीव