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दूसरा अधिकार। धारण करनेवाला और प्रजाको पालन करने में चतुर ऐसा जिसका दश वर्षका पुत्र है वह सुंदरी उसे छोड़कर कैसे चली गई ? ॥ १८० ॥ मनको हरण करनेवाली वह रानी नीच दासियोंकी संगतिसे नष्ट होगई। जिस खेतकी वाड़ ( खेतोंके चारों ओरकी कांटोंकी दीवाल ) ही उस खेतको खाने लग जाती है उसकी रक्षा फिर भला कौन कर सकता है ? ॥ १८१॥ अपने कुलाचारको पालन करनेवाला भी ऐसा कौन पुरुष है जो कुसंगतिसे नष्ट न हुआ हो ? क्या अग्निसे लाल हुए लोहेके गोलेकी संगतिसे जल नष्ट नहीं हो जाता है ? अवश्य हो जाता है ॥ १८२ ॥ इसप्रकारकी चिंतासे दुःखी होता हुआ वह राजा बहुत दिन बीत जानेपर भी राज्यको नहीं संभालता था। वह राज्य उसे अत्यन्त दुःखदायी जान पड़ता था ॥ १८३ ॥ अनेक राजाओंके द्वारा समझानेपर भी वह राजा क्षणभरके लिये भी उस शोकको नहीं छोडता था । क्योंकि उसके मनको रानी पहले हीसे हरण कर ले गई थी ॥१८४॥ इसके बाद उस रानीके ॥ १८० ॥ कुदासिका प्रसंगेन विनष्टा सा मनोहरी । वृत्तिरस्यति चेत्क्षेत्रं तद्रक्षां कः करोति हि ॥ १८१ ॥ कुसंगात को विनष्टो न स्वकुलाचारतत्परः । तप्तायःपिंडसंगेन नलं नश्यति किं न हि ॥१८२॥ भूपो राज्यं न पातिस्म भूरिघस्रगते सति । इति चिंतादरिद्रेण दुःखसंदोहभाजनम् ॥ १८३ ॥ नरपार्थिवसंदोहैः प्रबोधितोऽपि भूपतिः । न त्यजति क्षणं शोकं कांतया हृतमानसः ॥१८४॥ ततः स निधनं प्राप्तस्तद्वियोगप्रपीडितः । स्त्रीवियोगविषबाधा केषां