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दूसरा अधिकार। उन्होंने उस हाथीको धर्मोपदेश दिया, उसे सुनकर हाथीने श्रावकके व्रत धारण कर लिये। फिर उस हाथीने सचित्त फल पुष्प आदि कोई भी पदार्थ ग्रहण नहीं किये ॥१९॥ अन्त समयमें उसने समाधिमरण धारण किया, चारों प्रकारके आहारका त्यागकर दिया और भगवान अरहंतदेवकी स्तुति सुननेमें चित्त लगाया जिससे वह मरकर पहले स्वर्गमें देव हुआ ॥ १९२ ॥ हे राजन् ! वहांसे चयकर तू उत्तम राजा हुआ है । हे राजेन्द्र ! आगे चलकर तू मुक्त होगा ( मोक्षमें जायगा ) ॥ १९३ ॥ हे राजा महीचंद्र ! अव तू उन तीनों स्त्रियोंकी कथा सुन । वे तीनों स्त्रियां बड़ी प्रसन्नताके साथ प्रत्येक देशमें अपनी इच्छानुसार भ्रमण करने लगीं ॥१९४॥ घूमती फिरती वे अवन्ती देशमें जा पहुंचीं। उनके पास कंथा था, खड़ाम थीं, दंड था और साथमें बहुतसी योगिनी थीं ॥१९५॥ वे तीनों ही स्त्रियां लोगोंसे भीख मांग मांगकर पेट भरती थीं सो ठीक ही है-भूखे मनुष्योंकी लज्जा अवश्य ही प्रबोधकः ॥ १९० ॥ तेन संबोधितो हस्ती श्रावकव्रतमग्रहीत् । सचित्तफलपुष्पादिहरितं तत्र नाचरेत् ॥१९१॥ सोऽपि सन्यासमादाय चतुराहारवर्जनम् । मृत्वाद्य दिवि देवोऽभूदर्हतां नुतिकर्णनात ॥ १९२ ॥ ततोऽवतीर्य भूपस्त्वं जातोऽत्र नृपपुंगवः । कालांतरेण राजेंद्र! मुक्तिगामी भविष्यसि ॥१९॥ अथ शृणु महीचंद्र! तिसणां हि कथानकम् । ताः स्वेच्छाभ्रमणं चक्रुर्देशे देशे मुदान्विताः॥१९४॥ ततोऽनुक्रमतः प्रापुरवंतीविषयं च ताः । सुकंथापादुकादंडयोगिनीगणसंयुताः॥१९५॥ जनेषु प्रार्थनां कृत्वा जठरं पूरयंति ताः । मानुषाणां